खादी को फिर चमकाने के लिए कसमसा रहे बुनकरों के हाथ, सरकार से मदद की आस
प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर होने के संदेश से बुनकरों में उत्साह सरकार से मदद की लगा रखें है आस। 10 हजार की जगह अब महज तीन से चार दर्जन चल रहे हैंडलूम मगर हुनर है जिंदा। जानिए
मुजफ्फरपुर [प्रेम शंकर मिश्रा]। कभी देश-विदेश में मशहूर थी मधुबनी की खादी। कहते हैं, प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के लिए बनाई गई नौ हाथ की धोती कनिष्ठा अंगुली की अंगूठी से निकल जाती थी। यही कारण था कि उन्हेंं यहां की खादी से विशेष लगाव था। नेपाल राजघराने में भी यहां की खादी की पहुंच थी।
विनोबा भावे, पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत भी यहां की खादी के प्रशंसकों में शामिल थे। मगर, सरकारी उपेक्षा, कच्चे माल का अभाव व प्रतिस्पद्र्धा के कारण 1980 के दशक के बाद से यहां की खादी के बुरे दिन शुरू हो गए। घर-घर चलने वाले चरखे बंद हो गए। गली-गली चलने वाले हैंडलूम का शोर थम गया। बुनकरों ने महाराष्ट्र व अन्य राज्यों की राह पकड़ ली। हैंडलूम वाले हाथों ने पावरलूम थाम लिये। मगर, कोरोना संक्रमण काल में उनका हुनर भी ठप हो गया। वे घर लौटे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर बनने के मंत्र से इन बुनकरों में उत्साह है। यहां की खादी को फिर प्रसिद्धि दिलाने के लिए उनके हाथ कसमसाने लगे हैं।
जिले के भौआड़ा, लोहा कपसिया, पंडौल समेत कई जगहों पर 10 हजार हैंडलूम थे। 25 से 30 हजार बुनकर इससे जुड़े थे। वर्तमान में बमुश्किल 30 से 35 हैंडलूम चल रहे। लोहा कपसिया तो महीन खादी के कपड़े के लिए जाना जाता था। लोहा कपसिया बुनकर संघ के अध्यक्ष अब्दुल मलिक कहते हैं, महिलाएं घर-घर सूत बनाती थीं। इससे काफी महीन कपड़ा तैयार होता था। इसकी मांग राजनेता, पदाधिकारी, गण्यमान्य से लेकर नेपाल के राजघराने तक थी। ऊन के साथ सूत मिलाकर तैयार चादर उच्च कोटि की थी। मगर, 1980 के दशक से यहां की खादी के खराब दिन शुरू हो गए। सूत आना बंद हो गया। पावरलूम से बने सस्ते कपड़े बाजार में आ गए। वहीं, बुनकरों की उपेक्षा ने इसे काफी नुकसान पहुंचाया। नतीजा, हैंडलूम बंद हो गए।
कच्चा माल व बाजार मिल जाए तो बात बन जाए
क्षेत्रीय हस्तकरघा बुनकर सहयोग समिति के चेयरमैन हामिद अंसारी की मानें तो पहले खादी ग्रामोद्योग संघ को पुनजीॢवत किया जाए। उसकी जमीन पर कपास की खेती हो। इससे कच्चा माल मिल सकेगा। अब्दुल मलिक कहते हैं, उच्च गुणवत्ता वाली खादी के लिए एक बुनकर को प्रतिदिन डेढ़ से दो सौ ग्राम कच्चा सूत चाहिए। इससे तीन से चार मीटर कपड़ा तैयार होगा। एक चरखा अगर दिनभर चले तो इतने सूत काते जा सकते हैं। पांच हजार बुनकर हैंडलूम पर काम करें तो इतने ही चरखे चलेंगे। इससे 10 हजार लोगों को रोजगार मिल सकेगा।
कपसिया के राजीव कुमार झा कहते हैं, यहां खादी ग्रामोद्योग संघ में रेशम कीट का पालन होता था। धागा भागलपुर जाता था। सरसों तेल व शहद तैयार होता था। खादी ग्रामोद्योग संघ के पुनजीॢवत होते ही सभी चीजें जिंदा हो जाएंगी। संघ की इतनी जमीन है कि कपास की खेती हो सकती है। जिला खादी ग्रामोद्योग संघ की मंत्री सरला देवी कहती हैं कि प्रयास हो रहा। मगर, सरकार को गंभीर होना होगा।
मधुबनी जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक विनोद शंकर सिंह ने कहा कि बुनकरों को योजनाओं को लाभ मिल रहा है। 78 बुनकरों को पूंजी के रूप में 10-10 हजार रुपये दिए गए हैं। अन्य को भी लाभ दिया जाएगा।