घर में कैद बच्चों के स्वभाव में आने लगा चिड़चिड़ापन
10 वर्ष की स्नेहा बात-बात पर गुस्सा होकर रोने लगती है । गुस्से में वह सामान को भी नुकसान पहुंचाने से नहीं हिचकती। खाने-पीने में भी रुचि नहीं लेती ।
मुजफ्फरपुर। 10 वर्ष की स्नेहा बात-बात पर गुस्सा होकर रोने लगती है । गुस्से में वह सामान को भी नुकसान पहुंचाने से नहीं हिचकती। खाने-पीने में भी रुचि नहीं लेती । इसी तरह मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे आर्यन कुमार के व्यवहार में आए रूखेपन से माता-पिता चिंतित हैं । वह अधिकतर समय अपने कमरे में ही बंद रहता है। टोकने से चिड़चिड़ा हो जाता है। ये उदाहरण महज बानगी हैं। लॉकडाउन के बाद अधिकतर बच्चों, किशोरों के व्यवहार में तेजी से बदलाव आ रहा है। दरअसल लॉकडाउन में स्कूल बंद होने से किताबों व दोस्तों का साथ छूट गया। इस दौरान बच्चों ने मोबाइल पर वीडियो गेम व कार्टून चैनल को उन्होंने अपना दोस्त बनाने की कोशिश तो की लेकिन अब उनसे भी बच्चे ऊब गए हैं।
बच्चे अब स्कूल जाना चाहते हैं। अपने दोस्तों के साथ खेलना चाहते हैं । घर में वे खुद को कैद महसूस कर रहे हैं । लिहाजा उनके व्यवहार में भी बदलाव आने लगा है। वे अब गुस्सैल व चिडचिड़े हो रहे हैं।
लॉकडाउन के साइड इफेक्ट में 12 साल तक के बच्चों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन और आवेश देखा जा रहा। बच्चों के मनोभाव से अभिभावक चिंतित हैं।
बच्चों पर रिसर्च करने वाली संस्था का भी मानना है कि लॉकडाउन अवधि में बच्चों के व्यवहार में काफी बदलाव आया है। मानसिक तनाव पैदा हो रहा। आíथक और सामाजिक चुनौतियों से जूझ रहे अभिभावकों के लिए बच्चों की इस दशा को सहना एक बड़ी चुनौती बन गई है।
किशोरों में डिप्रेशन का खतरा : कॅरियर को प्राथमिकता देने वाले किशोर-किशाोरियों को शिक्षण संस्थान बंद होने, परीक्षाएं नहीं होने व नए नामाकन नहीं होने से अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है। भविष्य की चिंता उन्हें डिप्रेशन का शिकार बना रही है। ऐसी स्थिति में बात-बात पर गुस्सा करना, कमरे में बंद होकर चिंता में डूबे रहना, खाने-पीने में रुचि नहीं लेना जैसे बदलाव आ रहे हैं ।
माता-पिता के लिए सतर्क होने का समय : बच्चों एवं किशोरों के व्यवहार मे तेजी से आ रहे बदलाव को देखते माता-पिता को काफी सतर्क एवं नरम होने की जरूरत है । एमडीडीएम कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर व काउंसलर डॉ. शकीला अजीम कहती हैं कि माता-पिता व स्वजनों को काफी समझदारी से निर्णय लेना होगा। उन्हें अपने बच्चों के साथ एक दोस्त की तरह पेश आना होगा। उन्हें समय देना होगा। उनकी पसंद व नापसंद का खयाल रखना होगा। उन पर किसी तरह का दवाब नहीं बनाएं । एक सच्चे दोस्त की तरह उनकी परेशानी को सुनें एवं उसका निदान करें। बच्चों को यह अहसास कराएं कि वे हर कदम पर उनके साथ हैं।