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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ने तोड़ा श्रमिकों का दिल

पथराई आंखों में उम्मीद भरे सपने लिए दिल्ली और मुंबई से विशेष श्रमिक ट्रेन पर हजारों प्रवासी रविवार को मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 02:17 AM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 02:17 AM (IST)
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ने तोड़ा श्रमिकों का दिल
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ने तोड़ा श्रमिकों का दिल

मुजफ्फरपुर। पथराई आंखों में उम्मीद भरे सपने लिए दिल्ली और मुंबई से विशेष श्रमिक ट्रेन पर हजारों प्रवासी रविवार को मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे। 12 घंटे से अधिक विलंब से पहुंचने और ट्रेन के भीतर भोजन की व्यवस्था नहीं होने के चलते अधिकांश प्रवासी भूख से बिलबिलाते नजर आए। यही वजह है कि ट्रेन से उतरते ही श्रमिक काउंटर पर रखे चूड़ा के पैकेट पर पानी पर टूट पड़े। हालांकि, घंटों विलंब और सूखा चूड़ा देखकर कर श्रमिकों की भूख भी खत्म हो गई। गुस्सा तब फूटा जब जंक्शन से गंतव्य जिले के लिए जाने के लिए बस नही मिली। इनमें सैकड़ों लोग वैसे भी थे, जो शनिवार की रात ट्रेन से उतरे थे और पूरी रात जंक्शन पर काटने को मजबूर थे। वहीं रविवार की दोपहर भी जंक्शन पर उतरे श्रमिकों को बस के लिए शाम तक का इंतजार करना पड़ा। इधर, जंक्शन पर श्रमिकों के लिए कोई व्यवस्था नहीं दिखी। ट्रेन से उतरने के बाद कतारबद्ध होकर काउंटर से पानी-चूड़ा लेकर श्रमिक निकलते रहे। बाहर निकलते ही बस पकड़ने और बस का इंतजार करने के क्रम में शारीरिक दूरी का उल्लंघन करते रहे। हद तो यह कि यात्री बसों में श्रमिक खचाखच भर कर ही नहीं बल्कि बस की छतों पर भी लद कर गए। इस दौरान कुछ श्रमिकों ने हंगामा भी किया। जंक्शन पर न तो प्रशासनिक टीम दिखी और नही मेडिकल टीम। रेलवे पुलिस और प्रशासन ही श्रमिकों को ट्रेन से उतार बस तक पहुंचाती रही। कुल मिलाकर जंक्शन की जो तस्वीर नजर आई, उसमें अगर कोरोना वायरस के संक्रमण का फैलाव हो तो कोई बड़ी बात नहीं। गैर तो गैर रहे, अपनों ने भी किनारा कर लिया

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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ने बिहार के नवादा जिले के नवादा के रहने वाले अरुण कुमार और अन्य श्रमिको का दिल तोड़ दिया। अरुण अपने गांव के रमेश राम समेत एक दर्जन लोगों के साथ पुरानी दिल्ली के एक प्लास्टिक कंपनी में मजदूरी करते थे। साथ में उनकी पत्नी और चार बच्चे भी थे। पास में ही किराये पर कमरा लेकर रह रहे थे। लॉकडाउन के साथ ही कंपनी में ताला लग गया। इसके बाद से वह पत्नी और बच्चों के साथ लॉकडाउन टूटने का इंतजार कर रहे थे। इंतजार में ही उनकी मेहनत की बची हुई पाई-पाई खत्म हो गई। पड़ोस में रहने वाले गांव के रिश्तेदारों से मदद मांगी। फिर पड़ोसी से। लेकिन गैर तो गैर, अपनों ने भी किनारा कर लिया। आखिर में मकान मालिक ने भी सामान फेंक दिए। चार दिन और चार रातें सड़क पर गुजारी। इस दौरान कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए भोजन से जिदगी बची। इसी बीच, उन्हें बताया गया कि ट्रेन खुल रही है। वह पत्नी और चार बच्चों के साथ जंक्शन पहुंचे और फिर ट्रेन पकड़ कर मुजफ्फरपुर पहुंचा दिए गए। इसके बाद नवादा जाने के लिए उन्हें घंटों बस का इंतजार करना पड़ा।

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प्रवासियों ने बयां की दर्दभरी दास्तान

महानगरों की सड़कों पर दो जून की रोटी के लिए भटकते हजारों प्रवासियों की घर वापसी के सपने रविवार को साकार हो गए। हालांकि, जितनी बड़ी पीड़ा लॉकडाउन के दौरान महानगर में फंसने के चलते हुई, उससे कम जद्दोजहद ट्रेन में भी नही हुई। दिल्ली से लौटे बंगाल के मालदा के पंकज कुमार ने बताया कि शुक्रवार की सुबह दस बजे दिल्ली से ट्रेन चली और यहां रविवार को पौने बारह बजे पहुंचे। इस दौरान ट्रेन में कही भी भोजन की व्यवस्था नही थी। ट्रेन से उतरते ही वह पुलिस कर्मियों से खाना की मांग करते नजर आए। गाजियाबाद में रहने वाले सीतामढ़ी के रुन्नीसैदपुर की मनीषा देवी, पुत्री आरती, पुत्र मनीष कुमार, गया के अर्जुन साह, गणेश साह आदि ने भी दिल्ली में गुजारे खौफनाक पलों की दर्दनाक दास्तान और सफर की बेबसी बयां की। मायानगरी मुंबई से लौटे समस्तीपुर के कौशल, रेखा देवी, संजीव कुमार, आरती झा व कोमल आदि ने कहा कि अब कभी मुंबई नहीं जाएंगे।


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