भारतीय ज्ञान परंपरा को बचाने में पुस्तकालय की भूमिका अहम
लाइब्रेरी प्रोफेशनल एसोसिएशन के राष्ट्रीय सेमिनार में जुटे कई विद्वान। मुगलों ने किया था नालंदा विवि की लाइब्रेरी को जलाने का प्रयास।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। भारतीय ज्ञान परंपरा और विरासत की जीवंतता में पुस्तकालयों की अहम भूमिका है। लेकिन, अफसोस की बात है कि हमारे यहां लाइब्रेरी के अस्तित्व पर खतरा है। इसे बचाने की ही नहीं बल्कि समृद्ध करने की भी आवश्यकता है। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अमरेंद्र नारायण यादव ने शनिवार को लाइब्रेरी प्रोफेशनल एसोसिएशन के तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उपरोक्त बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि भारत विश्व गुरु प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय जैसे ज्ञान केंद्र के कारण भी था, जहां दुनिया भर के लोग अध्ययन करने आते थे। यहां की लाइब्रेरी दुनिया की सबसे विशाल और समृद्ध लाइब्रेरी थी। मुगल शासक यहां की ज्ञान परंपरा देखकर अवाक रह गया था। संयोग रहा कि उस समय वह बीमार पड़ गया और नालंदा के एक वैद्य से अपना रोग बताया। वैद्य ने आयुर्वेदिक लेप का नुस्खा बताया। उस नुस्खे को अपनाकर वह स्वस्थ हो गया। बाद में उसने वहां की लाइब्रेरी को नष्ट करने का प्रयास किया। उसकी सोच थी कि ज्ञान नष्ट होने पर नालंदा पर कब्जा करने में आसानी होगी।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक डॉ. कौशल किशोर चौधरी ने स्वागत भाषण किया। उम्मीद जताई कि देश भर से आये 150 से अधिक विद्वानों की सेमिनार में भागीदारी से पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में आगे की संभावनाओं की जानकारी मिलेगी। इसके साथ दिशा निर्देश की प्राप्ति होगी। विशिष्ट अतिथि एलएन मिश्र बिजनेस मैनेजमेंट कॉलेज के कुलसचिव शरतेंदु शेखर थे।
एलपीए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आरएन मालवीय ने संगठन और इसके कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला। जबकि एलएस कॉलेज की दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष शैलकुमारी ने अपने विचार व्यक्त किए। मेधावी लोगों को एलपीए के महासचिव सालेक चांद ने प्रमाणपत्र व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। धन्यवाद ज्ञापन कोषाध्यक्ष आनंद ए झा ने दिया।
बिहार में 142 से घटकर लाइब्रेरी 42 पर पहुंची
बिहार में 142 लाइब्रेरी से घटकर 42 पर पहुंची है। घटती पुस्तकालयों की संख्या और अस्तित्व को बचाने के लिए यह राष्ट्रीय सेमिनार हुआ है। यह जानकारी एलपीए के राष्ट्रीय महासचिव डी. सलेक चंद्र ने दी। वे यहां दूसरे सत्र में सेमिनार को संबोधित कर रहे थे।
कहा कि एसोसिएशन का प्रयास समाज में लोगों को किताब पढऩे की आदत को विकसित करना है, जो अभी सोशल मीडिया और ऑनलाइन सिस्टम से उपेक्षित है। दुनिया में चाहे जितनी आइटी का विकास हुआ है। पढऩे की परंपरा बरकरार है।
किताबों का विकल्प गूगल नहीं
एलपीए के अध्यक्ष डॉ. आरएन मालवीय ने कहा कि किताबों का विकल्प गूगल नहीं है। इसीलिए लाइब्रेरी में बैठकर पढऩे का जो आनंद आता है, वो कम्प्यूटर के सामने बैठकर डिजिटल लाइब्रेरी देखने में नहीं है। प्राचीन ज्ञान परंपरा का एक बड़ा पक्ष मौखिक वाचन रहा है। जिसमें एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती रही है। आज भी ऑनलाइन सिस्टम कितना भी लोकप्रिय हुआ हो। किताबों की गरिमा अलग है।