जातीय गोलबंदी में उलझ कर रह जाता है विकास का मुद्दा
मुंगेर । शहीदों की धरती तारापुर में लोकतंत्र के उत्सव चुनाव का उमंग लोगों के सर चढ़ने लग
मुंगेर । शहीदों की धरती तारापुर में लोकतंत्र के उत्सव चुनाव का उमंग लोगों के सर चढ़ने लगा है। चौक-चौराहों पर चुनावी चर्चा सुनाई देने लगी है। प्रत्येक चुनाव में प्रचार अभियान की शुरुआत विकास के वायदों के साथ होती है। लेकिन, अंत में बात जातीय गोलबंदी पर पहुंच कर अटक जाती है। यही कारण है कि तारापुर में सिचाई, स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी की समस्याएं अब भी जस की तस है। जलजमाव की समस्या कायम है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कुछ भी नहीं हुआ है। इस संदर्भ में दैनिक जागरण द्वारा पैनल डिस्कशन के माध्यम से क्षेत्र के बुद्धिजीवियों को आमंत्रित करते हुए उनसे यह जानने का प्रयास किया गया कि तारापुर की प्रमुख समस्याएं क्या हैं। उन समस्याओं को लेकर अब तक के प्रतिनिधियों ने क्या कार्य किए हैं। क्या यह समस्या चुनावी मुद्दा बनना चाहिए। क्या जातीय गोलबंदी चुनाव की हकीकत है। सामाजिक कार्यकर्ता चंदर सिंह राकेश ने बताया कि यह दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के समय से आज तक हमें जात-पात के विभेद से मुक्ति नहीं मिल सकी है। नेता जातीय आधार पर मतदाताओं को इसिलए अलग करते हैं कि विकास पर उनसे सवाल नहीं पूछा जाए। शहीद स्मारक में प्रतिमा स्थापित करने का संकल्प, बदुआ जलाशय का जर्जर अवस्था, स्वास्थ्य के मामले में अनुमंडल अस्पताल में पूर्ण कालीन उपाधीक्षक की समस्या, महाविद्यालय में विभागवार शिक्षकों की समस्या बरकरार है। जिन लोगों पर जिम्मेवारी तय की गई है, उन्हें चिन्हित कर उनके विरुद्ध कार्रवाई करने से ही विकास को गति मिल सकती है। आरएस कालेज के हिदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्षडॉ. शकील अहमद अंसारी ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों ने जाति को पाखंड बनाकर रख दिया है। इसे कल्पतरू समझ रखा है। जाति को कामधेनु समझा जाता है। नेताओं के लिए यह संजीवनी की तरह है। सभी राजनीतिक पार्टियां और उसके नेता को जनता की फिक्र नहीं है। विकास की बात तो करते हैं, परंतु दिखाई नहीं पड़ता है। बुद्धिजीवी वर्ग को आगे आना होगा। जिससे विकास चुनावी मुद्दा बन सके। यह जातीयता में परिणत नहीं हो। तभी सही प्रतिनिधि का चुनाव हो सकेगा। पारामाउंट लोक कल्याण समिति के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि तारापुर की जो समस्या है, वह पीढ़ी दर पीढ़ी बनी हुई है। विकास के नाम पर कागज में जो कुछ भी हो गया हो, वह धरातल पर दिखाई नहीं पड़ता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है कि बीमारी का समुचित इलाज हो सके। मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके। लोगों में जागरूकता का नहीं होना सबसे बड़ी समस्या है। लोगों में जागरूकता पैदा कर यह बताने का प्रयास होना चाहिए कि जातीयता की राजनीति से हमें क्या मिल गया । दुर्भाग्य है कि चुनाव के समय हम व्यक्ति की पहचान नहीं कर सकते तथा पार्टी की रणनीतियों पर भी ध्यान नहीं देकर जातीयता के आधार पर प्रत्याशी को मत डालते हैं। जिससे ऊपर उठे बगैर विकास की बात करना सही नहीं है। शिक्षा के संदर्भ में यही कहा जा सकता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए शिक्षकों का सर्वथा अभाव है। चैंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव अभिषेक अग्रवाल ने कहा कि तारापुर में समस्याओं का अंबार है। सुरक्षा,सड़क जाम की समस्या हैं। अगर कुछ कार्य होता भी है तो नेता सिर्फ शिलान्यास और उद्घाटन पर ध्यान देते हैं। विकास कार्यों की सही मॉनिटरिग उनके द्वारा नहीं होती है । धीरे धीरे ही सही अब जातीय बंधन टूटने लगा है। विधिज्ञ संघ तारापुर के पूर्व अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता हरे कृष्ण वर्मा ने कहा कि तारापुर को अनुमंडल बने 21 वर्ष हो गए, परंतु अभी तक उसे पूर्णकालिक अनुमंडल का दर्जा प्राप्त नहीं हो सका है। निर्वाचित प्रतिनिधि द्वारा कार्य के प्रति रुचि नहीं लेना इसका कारण है। हमलोग प्रतिनिधि चुनते हैं विकास के लिए ,परंतु सारे के सारे नेता जातिगत ढांचा में जाकर फंस जाते हैं। उनको लगता है कि अगर हम कार्य नहीं भी करेंगे तो ऊपर के नेता गठबंधन कर हमें वोट दिला ही देंगे। विकास के लिए लोगों को जातिगत ढांचे से ऊपर उठना होगा। जनता में जब तक नेता से विकास का हिसाब किताब लेने की हिम्मत नहीं होगी तब तक विकास नहीं होगा। जातीयता से उपर उठना ही होगा, तभी हम एक सच्चे प्रतिनिधि का चुनाव कर पाएंगे।