आत्मसात कर ही सिद्ध होगी ¨हदी दिवस की सार्थकता
मुंगेर । राष्ट्रभाषा ¨हदी के उत्थान को लेकर बातें तो बड़ी बड़ी होती है, लेकिन इसका व्यव
मुंगेर । राष्ट्रभाषा ¨हदी के उत्थान को लेकर बातें तो बड़ी बड़ी होती है, लेकिन इसका व्यवहारिक पहलू कुछ और ही है। यही कारण कि आज भी देश के अंदर यह दूसरे दर्जे की भाषा बन कर रह गई है। गुरुवार को शहर के कुछ साहित्यकार , कवि , गजलकार आदि ने ¨हदी को लेकर अपनी राय रखी। साहित्यकारों ने कहा कि शासन के शोषण के कारण ¨हदी आज भी उपेक्षित है। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों ने समाज की मानसिक गुलामी को भी इसके लिए जिम्मेवार ठहराते हुए कहा कि देश के लोग जब तक इसे आत्मसात नहीं करेंगे तब तक ¨हदी दिवस की सार्थकता सिद्ध नहीं होगी। बस यह आयोजन बनकर रह जाएगा।
कवि व साहित्यकार सुबोध छवि ने कहा कि आज भी ¨हदी को राष्ट्रभाषा का सही व्यवहारिक दर्जा नहीं मिल पाया है। इसका सबसे बड़ा कारण शासन का शोषण ही है। विषयों की पढ़ाई आखिर अंग्रेजी में ही क्यों हो, सिर्फ अंग्रेजी की पढ़ाई ही अंग्रेजी में होनी चाहिए। वहीं दूसरी ओर प्रो. शिवरानी ने कहा कि ¨हदी उपेक्षित है तो इसका कारण सिर्फ शासन प्रशासन ही नहीं हमारी मानसिक गुलामी भी है। हम अपनी भाषाओं में अंग्रेजी को ऊपर रखते है। वहीं ¨हदी की उपेक्षा के लिए ¨हदी के मठाधीश भी जिम्मेवार हैं। जिन्होंने इस भाषा को सुगम बनाने का प्रयास ही नहीं किया। इसलिए भाषा को अपनी संस्कृति का जामा पहनाते हुए हमें इसे अपनाना चाहिए। साहित्यकार मृद्ला झा ने कहा कि राजकाज की भाषा आज भी अंग्रेजी ही है। ¨हदी को रोजी रोटी की भाषा बनाने के बाद ही इसका कल्याण संभव है। 14 सितंबर को सिर्फ ¨हदी दिवस मना लेने से शासन प्रशासन की जिम्मेवारी समाप्त नहीं हो जाती है। गजलकार अंजनी कुमार सुमन ने कहा कि उन्नत राष्ट्र में संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा का न होना आहत करता है। ¨हदी ने भारत को एक वैश्विक पहचान एवं सम्मान दिया है। इसलिए देश में इसे राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकार किया जाना चाहिए। साहित्यकार मधुसूदन आत्मीय ने कहा अपने व्यवहार में जिस दिन अधिक से अधिक ¨हदी भाषा का प्रयोग करने लगेंगे, उस दिन सही मायने में हम ¨हदी को राष्ट्रभाषा बना पाएंगे।