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कब बहुरेंगे करैली वासियों के दिन

मुंगेर। लालगढ़ के नाम से मशहूर नक्सल प्रभावित धरहरा प्रखंड के करैली गांव के लोगों ने ही स

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Nov 2017 07:02 PM (IST)Updated: Sat, 04 Nov 2017 07:02 PM (IST)
कब बहुरेंगे करैली वासियों के दिन

मुंगेर। लालगढ़ के नाम से मशहूर नक्सल प्रभावित धरहरा प्रखंड के करैली गांव के लोगों ने ही सबसे पहले नक्सलियों के विरोध में आवाज बुलंद की थी। जिसके कारण नक्सलियों ने करैली गांव पर हमला कर कई ग्रामीणों को मौत के घाट भी उतार दिया था। लेकिन, करैली गांव की सूरत अब भी नहीं बदली है। आदिवासी, महादलित और पिछड़ी जाति बहुल्य करैली गांव के अधिकांश लोगों की आजीविका जंगल और पहाड़ पर ही आश्रित है। गांव में मात्र दर्जन भर युवक ही मैट्रिक तक की पढ़ाई की है। ऐसे में गांव के अधिकांश युवक रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं। वहीं, गांव के सैकड़ों महादलित परिवार टोकरी, सूप बना कर जीवन यापन कर रहे हैं। बांस की टोकड़ी बना रहे नागोपूरी ने कहा कि पत्नी, बेटी सब मिल कर दिन भर में तीन ही टोकड़ी बना पाते हैं। पूंजी के अभाव में उनके टोकरी को व्यापारी सस्ते दर में खरीदकर बाजार में उंची कीमत पर बेचकर मालामाल हो रहे है। गांव में भूनेश्वर तूरी, विल्सी तूरी, मंजू तूरी आदि ने कहा कि अगर सरकार हमलोग के लिए गांव में एक बड़ा हाल बना दें, तो उसमें बैठ कर हम काम कर सकेंगे। वहीं, बरसात में तैयार सूप व टोकड़ी को सुरक्षित रख सकेंगे। सरकार को पूंजी भी उपलब्ध करानी चाहिए। इधर, बीडीओ सुजीत कुमार राउत ने बताया कि करैली गांव में स्वरोजगार करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। साथ ही एक सामुदायिक भवन निर्माण के साथ-साथ बेरोजगारों को जॉब कार्ड मुहैया कराने की दिशा में भी पहल किए जाएंगे।


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