कोरोना काल में समाजसेवी कहाबै वला कहां सूति गेल छलैय भाय..
मुंगेर। सुबह का वक्त है। हेमजापुर चौक की चाय दुकान पर रामू काका सहिदर चाचा विजय बाबू
मुंगेर। सुबह का वक्त है। हेमजापुर चौक की चाय दुकान पर रामू काका, सहिदर चाचा, विजय बाबू और राजू भी बैठे हुए हैं। बगल से एक वाहन गुजरा, ठंड हवा शरीर से थोड़ा सिहरन आ गया है। चाय वाले की मोबाइल पर हल्की सी आवाज में भक्ति गाना बज रहा है, राखो लाज अबकी हरि..। अचानक दीनू काका का ध्यान गाने पर चला गया। आह! केतना सुंदर भजन है राखो लाज अबकी हरि..। सहिये कहैय छै, अबकी चुनाव में केकर लाज रहतै, केकर जैतै हो भाय (उनकी बातों से लग रहा था वे चुनाव का गप शुरू करने का प्रयास कर रहे हैं। हाफी लेते हुए सहिन्दर चाचा उनके इरादे भांपते हुए बोले- अबकी बहुते आदमी चुनाव में खड़ा होय रहलै चाचा। अबकी पूरा घमासान मचतै। अच्छा केतना केंडिडेट होतैय। कुछ अनुमान छै..। कोई कुछ बोलते इससे पहले चायवाला बोल पड़ा-कोय चाय भी लेभो..। चारों शांत होकर एक-दूसरे को ताकने लगे। अब आर्डर कौन दे भला? चाय की कीमत एक-दो रुपये तो है नहीं। एक चाय का पूरे सात रुपये देने पड़ते हैं चाय वाले को।
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एक-दूसरे का नब्ज टटोलने की जिरह
चारों एक-दूसरे के नब्ज टटोलने के प्रयास में थे। तभी मन मसोड़ते हुए विजय बाबू ने चर्चा का दौर जारी रखने के लिए चाय का आर्डर दिया। बात फिर शुरू हुई। अब चुनाव में जो जितता है। खूबे कमाता है..बिल्कुल सीधा जवाब दे जिय बाबू चुप हो गए। सुनते हैं फलांने मुखिया फिरे जीत रहा है। तबतक चाय आ गई। चारों ने तेजी से अपना हाथ गिलास की तरफ बढ़ाया और एक साथ ही चारों के मुंह से आवाज आई-सुरररऽऽ..। इतना आसान छै लगातार चुनाव जितना..। नयका फलां-फलां भी बहुते काम कैर रहलै छैय भाय..। अबकी वहीं जिततै..। राजू भैया बड़ी देर से सबकी बातें सुन रहे थे। उनसे नहीं रहा गया गया। बोले-अच्छा-अच्छा समाजसेवी कोरोना काल में कहां गेल छलैय..। सब घर में कोरोना के डर से घुस गेल रहै..। पहले से दस-बीस हजार खर्चा करिके चुनाव जितै के प्रयास करि रहल छै..। बहुत सोच-समैझ कैय. कोय कंडिडेट के वोट देबै रे भाय..तभी दुकान पर एक पुलिस वाला चाय पीने पहुंच गए। पुलिस वाले को देखते ही चुनावी चर्चा का सप्तमो अध्याय वहीं खत्म हो गये। कोई गाय को भूसा देने के बहाने तो कोई गमछा झाड़ते हुए वहां से खिसक लिए।