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लापरवाही में गई बालिका गृह की संवासिन व नवजात की जान

मधुबनी। जिला मुख्यालय के संतुनगर स्थित बालिका गृह की एक गर्भवती संवासिनी (18) की मौत के मामले में नगर थाना में यूडी केस दर्ज कराया गया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 11:04 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 11:04 PM (IST)
लापरवाही में गई बालिका गृह की संवासिन व नवजात की जान

मधुबनी। जिला मुख्यालय के संतुनगर स्थित बालिका गृह की एक गर्भवती संवासिनी (18) की मौत के मामले में नगर थाना में यूडी केस दर्ज कराया गया है। शनिवार को सदर अस्पताल में शव का पोस्टमार्टम कराकर शव को बालिका गृह प्रशासन के हवाले कर दिया गया। हालांकि, बालिका गृह की उक्त संवासिनी एवं उनके गर्भ में पल रहे शिशु की मौत में लापरवाही से इंकार नहीं किया जा सकता है। नगर थानाध्यक्ष अरुण कुमार राय ने बताया कि बालिका गृह की अधीक्षक के आवेदन पर यूडी केस दर्ज किया गया है। पोस्टमार्टम के बाद शव को बालिका गृह प्रशासन को अंतिम संस्कार कराने हेतु सौंप दिया गया है।

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यूडी केस के अनुसार संवासिनी नौ माह की गर्भवती थी। दो जून को सुबह प्रसव पीड़ा के बाद उसे सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन, स्थिति गंभीर देख उसी दिन के शाम उसे डीएमसीएच, दरभंगा रेफर कर दिया गया। उक्त संवासिनी की शरीर में खून की कमी होने से स्थिति नाजुक देख रेफर किया गया था। दो जून को ही देर रात उक्त संवासिनी ने एक शिशु को जन्म दिया। उसकी मौत हो गई। अगले दिन तीन जून को डीएमसीएच से भी बेहतर इलाज के लिए पीएमसीएच रेफर कर देने की बात बताई जा रही है। हालांकि, पीएमसीएच ले जाने के दौरान डीएमसीएच कैंपस में ही उसकी मौत हो गई। इसके बाद उसके शव का पोस्टमार्टम के लिए शुक्रवार को ही शाम में सदर अस्पताल, मधुबनी लाया गया। लेकिन शव का पोस्टमार्टम शनिवार को हुआ। शाम में शव का अंतिम संस्कार कर दिए जाने की बात भी बताई जा रही है।

उठ रहे सवाल

-जब उक्त संवासिनी को खून की कमी थी तो उसे पहले ही खून क्यों नहीं चढ़ाया गया। जब उसका स्वास्थ्य कमजोर था तो पहले ही बेहतर तरीके से इलाज कराकर स्वस्थ किया गया। अगर पहले खून चढ़ाया गया होता और पर्याप्त इलाज कराया गया होता तो शायद उक्त संवासिनी जच्चा एवं उसके बच्चा दोनों की जान बच गई होती।

- संवासिनी को सीतामढ़ी कोर्ट के निर्देश पर फरवरी में बालिका गृह में आवासित किया गया था। इस घटना के बाद चर्चा है कि अगर उक्त संवासिनी को माता-पिता के पास क्यों नहीं भेजा गया। अगर माता-पिता के पास नहीं जाना चाहती थी तो प्रेमी के हवाले ही करने के लिए आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाया गया।


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