लोक साहित्य पर बना रखी है गहरी पकड़
जिले के पंडौल प्रखंड अंतर्गत सरिसब पाही गांव वासी व लनामिवि के सेवानिवृत्त विश्वविद्यालय प्राध्यापक डा. विशेश्वर मिश्र मैथिली साहित्य के उछ्वट विद्वान हैं।
मधुबनी। जिले के पंडौल प्रखंड अंतर्गत सरिसब पाही गांव वासी व लनामिवि के सेवानिवृत्त विश्वविद्यालय प्राध्यापक डा. विशेश्वर मिश्र मैथिली साहित्य के उछ्वट विद्वान हैं। लोक साहित्य तथा विद्यापति के शास्त्र पर इनकी गहरी पकड़ है। कथा, कविता, समीक्षा, समालोचना के क्षेत्र में इनका उत्कृष्ट साहित्यिक अवदान विगत पचास वर्ष से निरन्तर मैथिली साहित्य के लिए रहा है। इनकी पहली पुस्तक 'विद्यापतिक काव्य साधना' वर्ष 1965 में प्रकाशित हुई थी। कहा कि उस समय भागलपुर के टीएनबी कॉलेज में मैथिली विभाग खुला था तथा मेरी नियुक्ति वहां हुई थी। अकेले में रहते पठन -पाठन ही होता था।इसी बीच मैंनें अपनी पहली पुस्तक लिखी।किताब छपने के बाद से साहित्य जगत में अपनी अच्छी पैठ बना ली। उस समय मैथिली साहित्य के स्थापित लेखकों ने इस पुस्तक की तथ्यात्मक विषय वस्तु को सुन्दर ढंग से स्पष्ट किया था।मेरी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई और उसी वर्ष बिहार व पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था। कहा कि पहली पुस्तक प्रकाशित हुई तो उस समय मैथिली साहित्य के नामचीन विद्वान आचार्य रमानाथ झा, प्रो आनंद मिश्र,जीवकांत,प्रफुल्ल कुमार ¨सह मौन सहित कई लोगों ने मुझे इतना उत्साहवर्द्धन किया कि मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा था। पीएचडी व डी लिट की डिग्री प्राप्त डा. मिश्र ने बताया कि लोक साहित्य पर भी मैंने कार्य किया तथा पुस्तक प्रकाशित हुई। करीब तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें विभिन्न विधाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। ढेरों पुस्तकें प्रकाशित होने के बाद भी मुझे वह आनंद प्राप्त नहीं हुआ जो पहली पुस्तक प्रकाशित होने के बाद हुआ था।