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नहर में जमीनो गेल आ पानियो नहि भेटल

जिले में आजादी के बाद चुनाव दर चुनाव हो रहा है लेकिन यहां का सबसे बड़ा मुद्दा पश्चिमी कोसी नहर परियोजना से सिचाई का है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 02 Apr 2019 11:52 PM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2019 06:34 AM (IST)
नहर में जमीनो गेल आ पानियो नहि भेटल
नहर में जमीनो गेल आ पानियो नहि भेटल

मधुबनी। जिले में आजादी के बाद चुनाव दर चुनाव हो रहा है, लेकिन यहां का सबसे बड़ा मुद्दा पश्चिमी कोसी नहर परियोजना से सिचाई का है। इसका निदान नहीं हो सका। किसी भी चुनाव में इस पर ध्यान न देना यहां के किसानों के लिए अहितकर हो रहा है। दुर्भाग्य की बात यह है कि इस महात्वाकांक्षी परियोजना का राजनीतिक लाभ लेने के लिए कई बार उद्घाटन हुआ। फिर भी 54 वर्षों बाद यह नहर अधूरी है। जिससे किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने का वादा अभी तक हवाहवाई साबित हुई है। रपट सुनील कुमार मिश्र की । मधुबनी। लोकसभा चुनाव का बिगुल फूंक चुका है। प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरने को बेताब हैं। जहां एक बार फिर अपने वादों से मतदाताओं को लुभाने का काम किया जाएगा। पुरानी समस्याओं पर नए वादों का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। लेकिन गत 54 वर्षों से किसानों के लिए कोढ़ साबित हो रहा पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली आज भी वरदान की जगह अभिशाप साबित हो रही है। इस योजना से किसानों को नुकसान छोड़ कोई लाभ नहीं हुआ। एक तो जमीन गई, दूसरे खेतों तक पानी नहीं पहुंचा। तुर्रा यह कि बेमौसम पानी आ जाने से किसानों की फसल बर्बाद हो जाती है।

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इनसेट:- 1

दोनों लोक सभा का सबसे बड़ा मुद्दा जिले के दोनों लोकसभा क्षेत्र का यह सबसे बड़ा मुद्दा है। जिसे परखने के लिए हम सुबह निकल पड़े। रहिका चौक स्थितएक पान की दुकान पर सुबह आठ बजे पहुंचा। जहां कहां से कौन प्रत्याशी होगा इस पर लोगों को अटकलें लगाते देखा। यही नहीं लोग इस बार इस समस्या को उठाने की चर्चा करते देखे गए। दुकान पर लोगों को चर्चा करते हम भी रूक गए। तभी वहां उपस्थित अखिलेश कुमार ने सिचाई पर चर्चा करते हुए कहा कि -हद भ गेलै। 54 बरख में पश्चिमी कोसी से पानि नहीं भेटल। रहिका सं पूरब उपवितरणी पांच साल जेसीबी सं खोदि क जे ठेकेदार गेल तेकर आई तक पता नई छै। जमीनो गेल आ पानियो नहि भेटल। वहीं बैठे चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए मो मुर्तुजा ने कहा कि पश्चिमी कोसी नहर लूट योजना है। इससे किसानों का भला नहीं होने वाला है। इस बार नेतवा सबसे इसका हिसाब लेंगे। चुनाव जीत कर जाता है और इस समस्या को भूल जाता है। वहीं चाय की चुश्की छोड़ कर गोविद कुमार ने कहा कि हद जमाना छै जहन पानि के काज नै पानि आबै छै आ जहन काज नै त नहर सूखल रहै छै। एखन गहूम में काज छल त पानि नहि एलै। अरविद कुमार झा ने कहा कि अब तो किसानी करने का मन भी नहीं करता है। निजी नलकूप से डेढ़ सौ रुपये प्रति घंटा पानी खरीदकर पटवन करना भारी पड़ रहा है। नहर व्यवस्था सही रहता तो पानी सस्ता में मिल जाता।

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बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी

यहां से चलकर हम बेनीपट्टी की ओर चले। धकजरी के बाद एवं हनुमान चौक से पहले कोसी नहर का सहायक वितरणी को सूखे अवस्था में देखा। जबकि इसमें अभी पानी रहना चाहिए था। वहीं मिल गए किसान राघव कुमार कहा कि ई त एहिना सूखले रहैत छै। देखियौ ने। पानि बरसाते टा में अबैत छैक। वहीं हमलोगों को बात करते देख व पत्रकार जान बौआ हनुमान चौक की ओर जा रहे किसान नसीब लाल ने कहा कि यौ पत्रकार जी ई नहर तं हमरा सबके कत्तौ के ने छोड़लक। अपना सबहक कहबी छैक जे बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया को साबित करता है। हमरा सबके धनहर जमीनों चलि गेल आ एकर लाभो नहि भेटल। कियो ध्यान नहीं दै छै। वोट मांग काल कहै छै जे एहि समस्या के एहि बेर निदान भ जेतै आ जीत गेलाक बाद त कनतोपि कए सूति रहै छै।

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इनसेट:- 3

क्या है इतिहास

देश की यह पहली नहर प्रणाली है जिसका पांच बार उद्घाटन हुआ। दूसरे लोकसभा के बाद जगजीवन

राम ने पहली बार उद्घाटन किया। तीसरे लोकसभा चुनाव के बाद तत्कालीन मुख्य मंत्री पं. विनोदानंद झा ने उद्घाटन किया। तीसरी बार नेपाल से इस परियोजना पर समझौता हो जाने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 24 अप्रैल 1965 में उद्घाटन किया। चौथी बार अब्दुल गफूर के मुख्यमंत्री काल में ललित नारायण मिश्र ने किया। पांचवी बार जब ललित नारायण मिश्र केंद्रीय मंत्री बने तो उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री

इंदिरा गांधी ने इसके कार्य का उद्घाटन किया। इस तरह 1965 से 1974 तक इस परियोजना का कुल पांच बार उद्घाटन किया गया। जिससे इसकी लागत बढ़ती गई और काम शून्य पर ही टिका रहा। आश्चर्य की बात यह है कि इसके बाद भी 54

वर्षों के बाद भी आज यह नहर प्रणाली अधूरा ही है।

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क्या थी योजना

पश्चिमी कोसी नहर की योजना के तहत कुल 112 किमी में मुख्य नहर बनना था। जो नेपाल में 32 किमी व भारत के मधुबनी में 80 किमी में बनना था। इसके साथ इससे अनेक वितरणी व उपवितरिणी के माध्यम से मधुबनी व दरभंगा के 6.45 लाख एकड़ जमीन में सिचाई होना था। जो आज तक अधूरे निर्माण होने के बाद पूरा नहीं हो सका है। बदहाल वितरणी व उपवितरणी इस योजना के तहत मधुबनी व दरभंगा में बनने वाली वितरणी व उपवितरणी का हालअ बदहाल है। छह दशक बीत जाने के बाद भी लक्षित कमांड क्षेत्र को यह प्राप्त नहीं कर सका है। भारी लूट खसोट के मुख्य नहर भी कमजोर हो चुका है। वितरणी क्षत विक्षत है। उपवितरणी का हाल एकदम से बदहाल है। इसके टूटे रहने से इसमें आया पानी किसानों के लिए समस्या ही समस्या पैदा कर रही है। इस कारण हाल यह है कि यह घोषित लक्ष्य का 10 से 15 प्रतिशत ही खेतों में सिचाई दे रहा है।


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