Move to Jagran APP

नाहर दुर्गा पूजा का है प्राचीन इतिहास

मधुबनी। जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर पंडौल प्रखंड के नाहर गांव में दुर्गा पूजा का इतिहास अति प्राचीन है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 11:19 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 05:05 AM (IST)
नाहर दुर्गा पूजा का है प्राचीन इतिहास
नाहर दुर्गा पूजा का है प्राचीन इतिहास

मधुबनी। जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर पंडौल प्रखंड के नाहर गांव में दुर्गा पूजा का इतिहास अति प्राचीन है। इस गांव में पूजा आयोजन का निर्णय श्मशान में सन 1943 में काफी विकट परिस्थिति में लिया गया था। वर्ष 1943 में नाहर गांव में हैजा का भयंकर प्रकोप हुआ था श्मशान में लाशों को जलना अनवरत जारी था। गांव के लोग एक लाश को जला कर लौटते थे और दूसरे को फिर लेकर जाते थे। ऐसी परिस्थिति में गांव के स्वर्गीय गीता नाथ झा, स्वर्गीय ज्योतिषी जटाधर झा, स्वर्गीय शोभा नंद मिश्र आदि ने इस बात का निर्णय लिया कि अपने गांव में भी दुर्गा पूजा का विधिवत आयोजन करेंगे। हालांकि उस समय गांव के अगल-बगल कहीं भी पूजा नहीं होती थी। गांव के लोग सरिसब पाही में पूजा देखने जाते थे। मां दुर्गा की कृपा से उसके बाद गांव में फिर कभी महामारी का प्रकोप नहीं हुआ। उस समय सर्वाधिक चंदा 5 रुपए गांव के गोकुलानंद मिश्र ने दिए थे। उसके बाद हर वर्ष परमप्रीत तरीके से मां दुर्गा की पूजा की जाती रही है। उसके घर से शुरू की गई पूजा जन सहयोग से आज भव्य मंदिर का रूप ले चुका है। आसपास के गांव के हजारों लोगों की संख्या में श्रद्धालु हर वर्ष यहां पूजा में शामिल होते हैं। लोग मां जगदंबा से अपनी मन की मुराद मांगते हैं। ऐसा मानना है कि माता रानी के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है। नवमी के दिन सैकड़ों कन्याएं पारंपरिक रूप में भोजन करती हैं। सभी देवी देवताओं की प्रतिमा बनाए जाते हैं। यहां ढोल - तासा ,पिपही बजाकर पारंपरिक रूप से देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। पूजा समिति के सचिव दयानंद झा ,अध्यक्ष महेश झा कहते हैं कि पहले यहां नाटक का मंचन किया जाता था। और उस समय भारी संख्या में लोग देखने आते थे। यहां की नाटक अगल-बगल के गांव में चर्चा का विषय बना रहता था। इस बार पूजा पंडित विशंभर मिश्र कर रहे हैं। संपुट पाठ भी किया जा रहा है। मां दुर्गा के मंदिर के बगल में बड़ा सा तालाब है। जो दर्शनीय स्थल जैसा लग रहा है। प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा के अवसर पर मंदिर परिसर में मेला लगा रहता था। जहां रंग-बिरंगे खिलौने की दुकान मिठाई की दुकान एवं महिलाओं के लिए विशेष श्रृंगार की दुकान रहती थी। लेकिन इस बार सब सूना-सूना सा है। सरकारी दिशा निर्देशानुसार इस बार ना तो दुकानें लग रही हैं और ना ही मेला लग रहा है। प्रतिदिन सायंकाल भजन कीर्तन का आयोजन होता है। अंतिम दिन गांव में कुमर पोखर जो पूजा स्थल से 1 किलोमीटर दूर है। वहां मंदिर परिसर से सभी मूर्ति को लेकर जुलूस के रूप में कुमर पोखर ले जाया जाता है । जहां बड़ा सा मेला लगता रहा है। यहां अगल-बगल के हजारों लोग उपस्थित रहते हैं। वही मूर्ति को जल में प्रवाह किया जाता है। यहां मुख्य कलश के नारियल का डाक लगता है। हजारों रुपए की बोली लगाकर श्रद्धालु इसे घर ले जाते हैं ।कहा जाता है कि सहां से दुर्गा मां की पूजा अर्चना करने वाले कभी खाली हाथ लौटते नहीं हैं।यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर परिसर में पहले नाटक का बड़ा ही अछ्वुत रूप से होता था। यहां तक के नाटक का मंच स्वर्गीय रामचंद्र झा, उमानाथ झा ,अमीरा आनंद मिश्र, दमना आनंद मिश्र, अमरनाथ झा, मुकेश झा आदि के द्वारा खेला जाता रहा है। जो काफी चर्चित रहा है ज्ञात हो कि वर्षों तक नाटक कमेटी के अध्यक्ष पूर्व कृषि मंत्री स्वर्गीय चतुरानन मिश्र रहा करते थे। कलश स्थापन दिन से ही सैकड़ों लोगों पूजा-अर्चना में झुकने लगे हैं। गांव के बाहर में रहने वाले भी गांव लौटने लगे हैं प्रतिदिन दर्जनों की संख्या में कुमारी ब्राह्मण बटुक का भोजन भी कराया जाता है, तथा सैकड़ों महिलाएं यहां मनोकामना के लिए खोंईछा भरती हैं।

loksabha election banner

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.