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कोरोना के बीच परिवार की नैया खींचने की जद्दोजहद में फंसे मजदूर

मधुबनी। चार महीनों से अधिक समय से राज्य सहित पूरे देश में जारी कोरोना संकट के कारण सभी वर्ग के लोगों को मुश्किल आन पड़ी है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 12:07 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 12:07 AM (IST)
कोरोना के बीच परिवार की नैया खींचने की जद्दोजहद में 
फंसे मजदूर
कोरोना के बीच परिवार की नैया खींचने की जद्दोजहद में फंसे मजदूर

मधुबनी। चार महीनों से अधिक समय से राज्य सहित पूरे देश में जारी कोरोना संकट के कारण सभी वर्ग के लोगों को मुश्किल आन पड़ी है। लेकिन, सबसे अधिक दुश्वारियां मजदूरों को झेलनी पर रही है। परदेस में काम कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले मजदूर लॉकडाउन में रोजी-रोटी छिन जाने से अपने घर को आ गए। उस समय तो कई मजदूर कभी वापस परदेस ना जाने की दुहाई दे रहे थे, लेकिन यहां काम नहीं मिलने से किसी तरह अपने परिवार की नैया खींचने की जद्दोजहद में लगे हैं। अब आलम यह है कि ये प्रवासी मजदूर कोरोना संकट खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि एक बार फिर परदेश की ओर रवाना हो सके। यहां काम मिलने की आस छोड़ चुके हैं। बाढ़ और बारिश ने भी उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। कई मजदूर तो पंजाब धानरोपनी को चले भी गए। मनरेगा से काम देने की बात हवा हवाई साबित हुई। वैसे तो राज्य एवं केंद्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर पर ही रोजगार देने के कई वादे किए, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और बयां करती है।

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सरकारी आंकड़ों में तीन हजार मजदूर लॉकडाउन में लौटे :

प्रखंड प्रशासन के अनुसार लॉकडाउन अवधि में लगभग तीन हजार प्रवासी मजदूर आए, लेकिन वास्तविक संख्या इससे कई गुना अधिक है। मनरेगा कार्यालय के अनुसार लगभग एक हजार प्रवासी मजदूरों को जॉब कार्ड उपलब्ध कराया गया। इन मजदूरों को 25 से 30 दिनों का काम उपलब्ध कराया गया। हालांकि, प्रवासी मजदूर इनके दावे को सिरे से खारिज करते हैं। यदि सरकारी आंकड़ों पर ही भरोसा करें, तो दो हजार प्रवासी मजदूरों को जब जॉब कार्ड ही नहीं दिया जा सका, तो फिर काम कैसे दिया जाता। बरसात होते ही मनरेगा का काम बंद कर दिया गया।

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बाढ़-बारिश ने मुश्किलें बढ़ाई :

प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें बाढ़ और बारिश के कारण और बढ़ गई है। बेतौंहा के विनोद पासवान, देवनाथ पासवान, कृपाल पासवान, परमेश्वर, नथुनी, रामाशीष, मनोज, सचिन समेत अन्य प्रवासी मजदूरों ने बताया कि हमलोगों को कोई काम नहीं मिल रहा है। बाढ़-बारिश एवं कोरोना संकट के कारण कहीं बाहर भी नहीं जा पा रहे हैं। मनरेगा से भी काम नहीं मिल सका। एकाध दिन कहीं मजदूरी मिल जाती है, तो कर लेता हूं। उधार लेकर किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा हूं। जमा पूंजी भी खर्च हो गई।

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कई मजदूर बुलावे पर बाहर गए :

इलाके के कई प्रवासी मजदूर अपने पुराने मालिकों के बुलावे पर एक बार फिर परदेस को चले गए। सैकड़ों मजदूर पंजाब के किसानों के बुलावे पर एक महीना पूर्व ही धनरोपनी करने पंजाब जा चुके हैं। धमियापट्टी के चलित्तर पासवान, रामू राम समेत एक दर्जन मजदूरों का जत्था एक महीना पूर्व ही धनरोपनी करने पंजाब निकल पड़ा। कई मजदूर अपने पुराने मालिकों के बुलावे पर ट्रेन और बस द्वारा अभी भी रवाना हो रहे हैं।

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इलाके में रोजगार का अभाव :

कोरोना संकट के कारण इलाके में अधिकांश काम बंद पड़े हैं। इस कारण भी प्रवासी मजदूरों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अनलॉक के दौरान कुछ गतिविधियां शुरू हुई थी, तो मजदूरों की उम्मीदें जगी थी। लेकिन, एक बार फिर से लॉकडाउन ने उनकी उम्मीदों को तोड़ दिया है। अब तो वे बस लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि घर पर भूखों मरने से अच्छा है कि बाहर निकल कर जीवन का संघर्ष करें। किस्मत में जो लिखा होगा, वही होगा। उससे कितना और कब तक भागेंगे।


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