Move to Jagran APP

दीया संग भगवान गणेश, लक्ष्मी की प्रतिमा को दे रहे अंतिम रूप

मधुबनी। प्रकाश का महापर्व दीपावली को लेकर स्थानीय कुंभकारों दीया और भगवान गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा के निर्माण कार्य को अंतिम रूप दे रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 Oct 2019 11:49 PM (IST)Updated: Wed, 23 Oct 2019 06:26 AM (IST)
दीया संग भगवान गणेश, लक्ष्मी की प्रतिमा को दे रहे अंतिम रूप
दीया संग भगवान गणेश, लक्ष्मी की प्रतिमा को दे रहे अंतिम रूप

मधुबनी। प्रकाश का महापर्व दीपावली को लेकर स्थानीय कुंभकारों दीया और भगवान गणेश, लक्ष्मी की प्रतिमा के निर्माण कार्य को अंतिम रूप दे रहे हैं। वहीं अन्य प्रदेशों से आने वाली गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा की मांग होने से स्थानीय स्तर पर तैयार प्रतिमा की मांग कम हो गई है। इसका नुकसान स्थानीय प्रतिमा कलाकारों को उठाना पड़ रहा है। शहर के एक कुंभकार योगेंद्र पंडित ने बताया कि दीया और भगवान गणेश, लक्ष्मी की प्रतिमा का कारोबार में पुश्तैनी होने से इससे जुड़े हैं। दीया के दरों में बढ़ोतरी नहीं होने से अब नाममात्र आमदनी होती है। वहीं अन्य प्रदेशों से आने वाले भगवान गणेश, लक्ष्मी प्रतिमा और दीया की जगह मोमबत्ती, इलेक्ट्रॉनिक दीया, झालड़ की मांग बढ़ने से दीया की मांग कम हो गई है। छोटा दीया एक, बड़ा दीया तीन रुपये में

loksabha election banner

मूर्तिकार सोनी देवी ने बताया कि दीपावली से करीब दस दिन पूर्व से भगवान गणेश, लक्ष्मी की प्रतिमा और दीया बनाने में परिवार के अन्य सदस्य जुटे रहते हैं। तब जाकर दो से तीन हजार रुपये की आमदनी होती है। कुंभकार रामा देवी, छेदी पंडित ने बताया कि मूर्ति व दीया के कारोबार में मुनाफा कम होने से कुंभकार रोजगार के लिए अन्य कार्यो से जुड़ रहे हैं। स्थानीय स्तर पर तैयार सरसों तेल से जलने वाले छोटा दीया प्रति एक रुपया, बड़ा दीया प्रति तीन रुपये व मिट्टी तेल से जलने बाली ढिबरी प्रति एक पांच रुपये के अलावा भगवान गणेश, लक्ष्मी की प्रतिमा 40 से 80 रुपये की दर पर बिक्री हो रही हैं। दीपावली पर मिट्टी से तैयार दीये की महत्ता

दीपावली पर भगवान गणेश-लक्ष्मी की पूजा में मिट्टी से तैयार दीये की महत्ता रही है। पंडित शंभूनाथ झा ने बताया कि किसी भी अनुष्ठान में सरसों तेल, तिल तेल, घी से जलने वाले मिट्टी से तैयार दीये को जरूरी माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में दीये की बड़ी महत्ता बतायी गई है। दीया की लौ को केंद्रित कर ऋषि-मुनियों की साधना का उल्लेख मिलता है। दीपावली पर मिट्टी के दीयों का महत्व रहा है। अखंड दीप से बड़ा लाभ मिलता है। दीपावली पर दीपों की लड़ियां अंधकार को दूर करता है। दीपावली में घर, प्रतिष्ठानों को इलेक्ट्रॉनिक दीया, झालड़ से सजाने की परंपरा बढ़ी है। दीया की जगह मोमबत्ती जगह ले रही है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.