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काफी प्रयास के बाद भी स्कूल में खेल का विकास नहीं

स्कूलों में खेलों को बढ़ावा देने वाली तमाम योजनाएं कागजों पर ही संचालित हो रही है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 11:28 PM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2018 11:28 PM (IST)
काफी प्रयास के बाद भी स्कूल में खेल का विकास नहीं

मधुबनी। स्कूलों में खेलों को बढ़ावा देने वाली तमाम योजनाएं कागजों पर ही संचालित हो रही है। असल में सरकारी स्कूलों में मैदानों और प्रतिभाओं की दुर्दशा जगजाहिर है। सरकारी स्कूलों में उदासीनता से खेल प्रतिभाएं दम तोड़ रही है। सरकार के लाख प्रयास के बावजूद स्कूलों में खेल के स्तर में कोई सुधार देखने को नही मिल रहा है। प्रतिभाओं को निखारने के लिए सरकारी स्कूलों में जरूरी सुविधाऐं और माहौल नदारत है। हकीकत यही है कि अधिकांश स्कूलों में खेल पूरी तरह कागजो पर ही सिमट के रह गया है। सरकारी स्कूलों में खेल पीरियड का चलन लगभग खत्म हो चुका है। पहले सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों के आठवीं घंटी खेल के लिए होती थी। इसमे बच्चों को खेल और शारीरिक व्यायाम संबंधी जानकारी दी जाती थी। मगर अब ये घंटी पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। सरकारी विद्यालयों में खेलकूद और आठवीं घंटी की जमीनी हालात जानने के लिए जागरण ने गुरुवार को बच्चा दाई उच्च विद्यालय ननौर का जायजा लिया।

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क्या थी स्थिति

विद्यालय में खेल का मैदान उपलब्ध नहीं है। जो छोटा सा मैदान है भी वो भी किसी खेल के लायक नहीं है। बच्चो को खेलने के लिए बाहर का ही भरोसा है। खेल शिक्षक बरसों पहले सेवानिवृत्त हो चुके हैं। फिलहाल खेल शिक्षक के प्रभार में गणित के अध्यापक हैं। प्रधानाध्यापक अजय कुमार झा ने बताया की सांसद वीरेंद्र कुमार चौधरी के ऐच्छिक कोष से मिला जिम का सामान जंग खा रहा है। स्कूल में 650 बच्चों के मात्रा छह शिक्षक उपलब्ध है। स्कूल में बच्चों के पढ़ने के लिए ना भवन है ना खेलने के लिए मैदान। कई बच्चे खेल को लेकर काफी उत्साहित दिखे। मगर संसाधन का अभाव और माकूल व्यवस्था नही होने की वजह से निराश थे। बच्चों ने बताया कि स्कूलों में नियमित कोई खेल नहीं खेला जाता है और ही कोई आपसी खेल प्रतियोगिता ही आयोजित की जाती है।


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