मिथिला की संस्कृति विश्व विख्यात
हरलाखी (मधुबनी), संवाद सहयोगी: राज्य का आकार जितना छोटा होगा वहा विकास की संभावना उतनी ही अधिक होगी। मिथिला की संस्कृति विश्व विख्यात है। इतिहास साक्षी है कि मिथिला की धरती कई ऋषि ,महर्षी व विद्वानों ,विदूषियों के लिए जानी जाती रही है। जनक, सीता, विद्यापति, ज्ञागवल्य, आयाचि, कालीदास, मंडन मिश्र, भारती व गार्गी का चरित्र चित्रण हमारे प्रेरणा श्रोत रहे है। इसलिए अब मिथिला राज्य की माग अपरिहार्य होती जा रही है। ये बातें अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद के बैनर तले हरलाखी प्रखंड क्षेत्र के मनोहरपुर, विसौल एवं गंगौर गाव में मिथिला राज्य बनाने की माग को लेकर आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण चेतना शिविर में परिषद के अध्यक्ष कमलाकात झा ने कही। उन्होने कहा कि मिथिला का इतिहास गौरवान्वित करने वाला रहा है। हमारे आदर्श विश्व में सदियों से अनुकरणीय रहा है। इसे बचाये रखे जाने के लिए मिथिलावासी से एकजुट होकर मिथिलाराज्य स्थापित कराने में संघर्ष करने का आह्वान किया। वहीं डा. धनाकर ठाकुर ने कहा हम सदियों से मिथिलावासी हैं और मिथिलाचल राज्य का गठन करवाकर विश्व पटल पर मिथिला की वास्तविक व मजबूत पहचान स्थापित करवाना हमारा लक्ष्यों में से मुख्य है। उन्होंने उपस्थित लोगों से मिथिला परिषद का सदस्य बनने की अपील भी की। भाजपा प्रदेश वाणिज्य मंच के क्षेत्रीय प्रभारी देवानंद मिश्र सुमन ने जानकारी देते हुए बताया कि जितना छोटा राज्य होगा, राज्य की विकास भी उतनी तेजी से होगी। वर्तमान में राज्य सरकार के द्वारा मिथिला के लोगों की उपेक्षा की जा रही है । मौके पर भारत नेपाल सीमा जागरण मंच के सदस्य ललित झा, मदन झा, विरेंद्र झा, कृतनारायण झा, रामसुदिष्ट साह, रामकृपाल सिंह, शशिदेव लाल कंठ, डीके धीरज, कविता कुमारी, घनश्याम साह व रविरंजन कुमार समेत दर्जनों अन्य लोग मौजूद थे।