भारत ने दुनिया को दिया धर्म का संदेश : डॉ. ज्ञानंजय
मधेपुरा। भारत एक धर्म प्रधान देश है। धर्म के कारण ही दुनियां में भारत की ख्याति रही है। य
मधेपुरा। भारत एक धर्म प्रधान देश है। धर्म के कारण ही दुनियां में भारत की ख्याति रही है। यह बात मानविकी संकायाध्यक्ष डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही। वे शुक्रवार को स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग में आयोजित परिचर्चा में बोल रहे थे। यह परिचर्चा धर्म की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित की गई थी। डॉ. द्विवेदी ने कहा कि भारतीय परंपरा में सामान्यत: धर्म को कर्तव्य के अर्थ में ग्रहण किया गया है। इस अर्थ में धर्म की प्रासंगिकता असंदिग्ध है। उन्होंने कहा कि भारतीय ¨चतन परंपरा में संपूर्ण चराचर जगत के कल्याण का भाव निहित है। हम यह मानते हैं कि सभी मनुष्य एवं मनुष्येतर प्राणी एक हैं। किसी का किसी से कोई विरोध नहीं है। मानव-धर्म सबसे बड़ा धर्म है। जाति, धर्म, सम्प्रदाय एवं राष्ट्र के झगड़े निरर्थक है। इस अवसर पर मुख्य वक्ता स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, बीआर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेश्वर ¨सह ने कहा कि भारतीय ¨चतन परंपरा में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां धर्म को कई अर्थों में लिया गया है, लेकिन मुख्य अर्थ कर्तव्य एवं स्वभाव है। इसके अलावा धर्म को ईश्वर साक्षात्कार, आत्मबोध एवं सौहार्दपूर्ण व्यवस्था के अर्थ में लिया गया है। कुलपति ने कहा कि धर्म समाज को धारण करने वाली व्यवस्था है। इससे व्यक्ति का आत्मोत्थान होता है और समाज के समग्र विकास का मार्ग भी प्रशस्त होता है। धर्म ही मनुष्य को पशु जगत से पृथक करता है। उन्होंने कहा कि धर्म हमें संकीर्णताओं से ऊपर उठाता है और हमें विश्वचेतना से जोड़ता है। धार्मिक व्यक्ति अपने आपको संपूर्ण चराचर जगत से एकाकार मानता है। वह आत्मवत सर्वभूतेषु के भाव को धारण करता है। वह दूसरों को भी अपने जैसा ही मानता है। इस अवसर पर ¨सडीकेट सदस्य डॉ. जवाहर पासवान, डॉ. सुधांशु शेखर, अरूण कुमार पंडित, विकास कुमार, सुपेन्द्र कुमार सुमन, वरूण कुमार, राजहंश राज, अर्चना कुमारी, सुनील कुमार, मितेश कुमार ¨सह, गुड्डू, चंदन आदि उपस्थित थे।