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राष्ट्रवाद है देश की ताकत, इसे किसी धर्म व संप्रदाय से जोड़ना देशहित में नहीं : धरनीधर सिंह

मधेपुरा। अधिवक्ता परिषद की ओर से वकालतखाने में परिषद का स्थापना दिवस मनाया गया। प्रदेश मंत्री

By JagranEdited By: Published: Mon, 27 Sep 2021 06:34 PM (IST)Updated: Mon, 27 Sep 2021 06:36 PM (IST)
राष्ट्रवाद है देश की ताकत, इसे किसी धर्म व संप्रदाय से जोड़ना देशहित में नहीं : धरनीधर सिंह
राष्ट्रवाद है देश की ताकत, इसे किसी धर्म व संप्रदाय से जोड़ना देशहित में नहीं : धरनीधर सिंह

मधेपुरा। अधिवक्ता परिषद की ओर से वकालतखाने में परिषद का स्थापना दिवस मनाया गया। प्रदेश मंत्री धरनीधर सिंह की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने राष्ट्रवाद पर जमकर चर्चा की।

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अधिवक्ता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्र की परिभाषा एक ऐसे जन समूह के रूप में की जा सकती है जो कि एक भौगोलिक सीमाओं में एक निश्चित देश में रहता हो, समान परंपरा, समान हितों व समान भावनाओं से बंधा हो और इसमें एकता के सूत्र में बांधने की उत्सुकता तथा समान राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पाई जाती हों। अधिवक्ता कौशल किशोर सिन्हा ने कहा कि राष्ट्रवाद के निर्णायक तत्वों मे राष्ट्रीयता की भावना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीयता की भावना किसी राष्ट्र के सदस्यों में पायी जाने वाली सामुदायिक भावना है जो उनका संगठन सुदृढ़ करती है।

अधिवक्ता ओमप्रकाश ने कहा कि हाल के दिनों में कुछ लोग राष्ट्रवाद को हिंदुत्व से जोड़ देते है, यह उसकी मानसिक समस्या है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि राष्ट्रवाद किसी देश की ताकत होती है। सचिव नवीन कुमार ने कहा कि कुछ लोग भारतीय राष्ट्रवाद को एक आधुनिक तत्व मानते हैं। इस राष्ट्रवाद का अध्ययन अनेक दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और बहुमुखी रही है। राष्ट्रवाद पर अंगुली उठाने वाले देशद्रोही अधिवक्ता सीमा कुमारी ने कहा कि भारत की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक संरचना तथा विशाल आकार के कारण यहां पर राष्ट्रीयता का उदय अन्य देशों की तुलना में अधिक कठिनाई से हुआ है। शायद ही विश्व के किसी अन्य देश में इस प्रकार की प्रकट भूमि में राष्ट्रवाद का उदय हुआ हो। अधिवक्ता किशोर कुमार सिन्हा ने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद को समझने के लिए उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि को समझना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भारत में जो भी राष्ट्रीयता की भावना थी, वह अधिकतर धार्मिक व आदर्शवादी एकता की भावना थी, वह राजनैतिक व आर्थिक एकता की भावना नहीं थी। अधिवक्ता अनिल कुमार यादव ने कहा कि भारतीय संस्कृति मुख्यरूप से धार्मिक रही है। इसमें राजनैतिक तथा आर्थिक मूल्यों को कभी इतना महत्व नहीं दिया गया, जितना कि आधुनिक संस्कृति में दिया जाता है। भारतीय संस्कृति की एकता भी धार्मिक आदर्शवादी एकता है। उसमें राष्ट्रीय भावना का अधिकतर अभाव ही दिखलाई देता है। बैठक में भगवान पाठक, डा. धर्मेद्र राम, कौशल किशोर सिन्हा, सूचिद्र कुमार सिंह आदि मौजूद थे।


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