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मुझे भी तो कोरोना हो सकता है साहब की क्वारंटाइन सेंटर पर ड्यूटी लगाई गई है। सेंटर

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 05:58 PM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 06:11 AM (IST)
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मुझे भी तो कोरोना हो सकता है

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साहब की क्वारंटाइन सेंटर पर ड्यूटी लगाई गई है। सेंटर पर लोगों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ परेशानी भी बढ़ने लगी। खाना में थोड़ी सी देरी पर लोगों का हंगामा। साहब परेशान। बड़े साहब को फोन करते तो उधर से भी डांट मिलती। अब सांप व छुछुंदर वाली कहावत याद आने लगी है। एक दिन तो लोगों ने साहब को घेर लिया। कहने लगे। सरकार काफी सुविधा दे रही है, लेकिन उनलोगों को परेशान किया जा रहा। स्थिति देख साहब ने किसी प्रकार सामान का इंतजाम किया। लोगों को समझाकर शांत किया। उसके बाद बड़े साहब को फोन कर कहा। ड्यूटी से हटा दीजिए। यहां नहीं रह पाएंगे। काफी परेशानी हो रही। एक सहयोगी ने पूछ लिया। क्या दिक्कत है। साहब कहने लगे- बात-बात पर लोग हंगामा करने लगते हैं। डर लगता है कि कहीं कोई संक्रमित हो। उनके संपर्क में आने से मुझे भी तो कोरोना हो सकता है।

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दारोगा और दबंग की दोस्ती

दारोगा जी की अदा निराली है। वे हर काम स्थिति देखकर करते हैं। पिछले दिनों एक एम्बुलेंस चालक के साथ मारपीट हुई। एम्बुलेंस चालक ने मारपीट का मुकदमा के लिए आवेदन दिया। लेकिन, दारोगा जी ने केस नहीं किया। एक दबंग का दवाब था कि केस नहीं करना है। फिर चिकित्सकों व चालक संघ का दवाब पड़ा तो दो दिन बाद केस दर्ज करना पड़ा। इससे उनका चहेता दंबग नाराज हुए और उनके घर पहुंच गया। तब दारोगा जी बोले, चिता नहीं कीजिए उसे भी फंसा देंगे। वहीं से चालक को फोन कर धमकाया। दबंग ने भी बात की। बातचीत का ऑडियो वायरल हो गया। बात बड़े साहब तक पहुंच गई। स्थिति बिगड़ता देख मैनेज कराया गया। मैनेज के लिए चालक पर भी दो केस करवा दिया गया। डराया गया। उसके बाद बात बनी। अब तो हर ओर दारोगा व दंबग के बीच का रिश्ता की चर्चा हो रही है।

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साहब से सांठ-गांठ जरूरी है

सरकारी बाबुओं के लेट-लतिफी तो आम बात है। फिर भी समय के साथ नहीं चलना कभी-कभी भारी पड़ जाता है। ऐसा ही एक मामला सरकारी दफ्तर में देखने को मिला। ऑफिस में अभी-अभी नए साहब ने कार्यभार संभाला है। सो यहां सब कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा है। सभी ने तो अपनी कार्यशैली बदल ली है। यहां एक बाबू को लेट आने की आदत थी। पिछले साहब से सेटिग थी। पर, क्या पता इस साहब के आते ही काया पलट हो जाएगा! सो बाबू के लेट आते ही उन्हें मिटिग से बाहर कर दिया गया। वहीं सबके सामने खूब खरी-खोटी और वार्निंग भी मिल गई। बेचारे मुंह लटकाए अपने कक्ष में आकर बैठ सोच रहे थे। लगता है इनसे सेटिग करना ही होगा, नहीं तो वार्निंग का दौर थमना मुश्किल है। लेट तो आदत है सो तो बदल सकते नहीं। साहब से ही सांठ-गांठ जरूरी है। तभी बात बनेगी।

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साहब को नहीं मिली पहचान

कोराना के इस संकट में सरकारी ओहेदेदारों की ठाठ बढ़ गई है। अब जिले के एक सरकारी ओहदेदार को देखिए। साहब मुख्यालय तक ही सिमित थे। कोरोना में उन्हें बड़े साहब ने क्वांरटाइन सेंटर का निरीक्षण का जिम्मा सौंप दिया। जिम्मा मिला तो बांछे खिल गई। मुख्यालय तक ही ठाठ-बाट अब तक होती थी। अब तो प्रखंडों में भी खूब आदर-मान होगा। कुछ ऐसा ही ख्वाब संजोए एक सूदरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र के क्वारंइटाइन सेंटर में निरीक्षण करने पहुंच गए। लेकिन, होनी को कौन टाल सकता है। वे जैसे ही क्वारंइटाइन सेंटर पर पहुंचे, वहां कार्य कर रहे एक निचले तबके के कर्मचारी ने रोक दिया। साहब को तो मानों सांप ही सूंघ गया। सोचा कुछ और था, यहां हो कुछ और गया। बेचारे को अपना परिचय देना पड़ा, तब जाकर बात बनी। अब बेचारे यह दर्द बताए तो किसे किसे। सो अपने अंदर ही दबाने में फायदा समझ रहे हैं।


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