सरकार के पड़े पांव, क्या सुधरेगी एनएच की हालत
मधेपुरा। क्या सरकार के आगमन से कोसी क्षेत्र को जर्जर सड़कों से निजात मिल पाएगी। लोगों की उ
मधेपुरा। क्या सरकार के आगमन से कोसी क्षेत्र को जर्जर सड़कों से निजात मिल पाएगी। लोगों की उम्मीदें राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दौरे पर हैं। आमजनों में यह सवाल है कि क्या सीएम की नजरें इनायत होने से जिले को बदहाल व जर्जर सड़कों से निजात मिल पाएगी। पहली बार मुख्यमंत्री ने मधेपुरा में न सिर्फ खुद घूमकर सड़कों का जायजा लिया बल्कि इसके बाद समीक्षात्मक बैठक भी की। ऐसे में आमजन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या अब सड़कों की सूरते हाल बदलेगी। क्या दो दशक से निर्माण की बाट जोह रही एनएच 106 एवं 107 का निर्माण कार्य हो पाएगा। वैसे तो सीएम के आगमन की सूचना से चारों तरफ फटाफट सड़क निर्माण या फिर मोटरेबल बनाने का कार्य किया गया। लेकिन आमजन इससे संतुष्ट नहीं है। लोगों का कहना है हर बार ऐसा किया जाता रहा है कि सीएम के आने पर अधिकारी सड़क चकाचक कर देते हैं। लेकिन इसके बाद इसकी कोई सुध लेने वाला नहीं होता है। कोसी में टूट जाता है नेशनल हाइवे का पैमाना नेशनल हाइवे को बेहतरीन सड़क एक पैमाना माना जाता रहा है। लेकिन कोसी से गुजरने वाली एनएच 106 एवं 107 को देख यह धारणा टूट जाती है। क्षेत्र में दो एनएच है। लेकिन यह मात्र कहने को ही एनएच है। इस दोनों एनएच की स्थिति ग्रामीण क्षेत्र की सड़क से भी बदतर है। एनएच 106 बीरपुर से बिहपुर तक है। वहीं एनएच 107 महेशखूंट से लेकर सहरसा, मधेपुरा होते हुए पूर्णिया तक है। मधेपुरा, सहरसा की स्थिति सर्वाधिक बुरी है। वहीं मधेपुरा-पूर्णिया, मधेपुरा-उदाकिशुनगंज एवं मधेपुरा-बीरपुर की हालत भी बद से बदतर और उससे भी बढ़कर जानलेवा भी हो चुकी है। कुल मिलाकर मधेपुरा से चारों तरफ आने-जाने वाले सभी प्रमुख मार्ग एनएच ही घोषित है। एनएच 106 की पहचान बरसात में तलाबनुमा गड्ढे एवं गर्मी में उड़ती धूल बनी रहती है। बरसात के मौसम में सड़क में बने बड़े गड्ढे में जब पानी लग जाता है तो छोटा छोटा तालाब से ²श्य दिखने लगता है। एनएच की जर्जरता के विरुद्ध हुआ था जन आंदोलन एनएच की जर्जरता के विरूद्ध अगस्त माह में पूरे कोसी क्षेत्र में जन आंदोलन हुआ था। बिना नेतृत्व के हुए इस जन आंदोलन के बाद महकमों में संचिका थोड़ी खिसकी। जन आंदोलन के तहत 27 अगस्त को पूरे कोसी को ठप किया गया था। पूरे कोसी एवं सीमांचल में इसका व्यापक असर रहा था। जन आंदोलन को दो दर्जन से अधिक संस्थाओं एवं संगठन का सहयोग प्राप्त था। ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी मुद्दे को लेकर समाज के सभी वर्ग के लोग एकजुट हुए थे।