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वादे तो किए हजार पर नहीं बही विकास की बयार..

मधेपुरा। लोकसभा चुनाव को लेकर नेताओं की चमचमाती गाड़ी सरपट सड़क पर दौड़ रही है। श

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 02:40 AM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 06:39 AM (IST)
वादे तो किए हजार पर नहीं बही विकास की बयार..
वादे तो किए हजार पर नहीं बही विकास की बयार..

मधेपुरा। लोकसभा चुनाव को लेकर नेताओं की चमचमाती गाड़ी सरपट सड़क पर दौड़ रही है। शहरी इलाके में तो सब कुछ ठीक-ठाक लगता है। पर जब बाढ़ ग्रस्त इलाके की बात करते हैं तो यहां न नेताओं की पहुंच होती है और न चमचमाती गाड़ी की धमक। यहां दिखाई पड़ती है समस्याओं का मकड़जाल। लोकसभा चुनाव को लेकर भले ही प्रशासन द्वारा संवेदनशील एवं अतिसंवेदनशील बूथों को चयन कर मतदान प्रक्रिया की तैयारी में युद्ध स्तर पर लगा हुआ है। मगर फुलौत दियारा के सुदूरवर्ती इलाके के लोग कैसे रह रहे है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी लोग चचरी पुल के सहारे गांव पहुंचते हैं। फुलौत दियरा इलाके के नदी बांध पर बसे मोरसंडा गोठ, राम चरण टोला, सपनी मुसहरी, पनदही वासा, बरिखाल, बरबिग्घी, अपनी बासा, करेल बासा सहित दो दर्जन गांवों के लोगों को चचरी पुल का ही सहारा है। मतदाताओं को तीन से चार किलोमीटर पैदल चलकर गांव से दूर मतदान केंद्र पर वोट डालने नदी पार कर जाना होगा। चचरी पुल के सहारे है 10 हजार की आबादी यह पुरी तरह से बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र है। यहां बारिश के दिनों के दिनों में कोसी नदी इस इलाके को अपने आगोश में लिलने को तैयार रहती है। मुख्यालय यहां तक जाने के लिए लोगों को नदी पर बने चचरी के पुल का सहारा लेना पड़ता है। बारिश के दिनों में तो इस पुल पर भी चलना पर खतरा बना रहता है। इस क्षेत्र के सपनी मुसहरी, घसकपुर, पनदही बासा, झंडापुर बासा ओर फुलौत पूर्वी पंचायत के बड़ी खाल, बर बिग्घी, पिहोरा बासा, करैल बासा, झंडापुर बासा, अनुप नगर, नवटोलिया, कदवा बासा, मोरसंडा पंचायत के करैलिया मुसहरी, रामचरण टोला, अमनी बासा के लोग वोट डालने चचरी पुल के सहारे मतदान केंद्र तक पहुंचेंगे। तीन महीने तक गांव में नही बजती है शहनाई बाढ़ से प्रभावित होने वाले गांवो में तीन महीने तक किसी भी तरह की शहनाई नही सुनाई पड़ती है। बाढ़ से तीन महीने तक प्रभावित रहने तीन दर्जन गांव में आवागमन पूरी तरह से बाधित हो जाने के कारण ग्रामीणो को बेटे-बेटी की शादी-विवाह करना मुश्किल हो जाता है। इस बावत सपनी मुसहरी के गिरधारी ऋषिदेव,ललन ऋषिदेव, रतन ऋषिदेव, दयानंद ऋषिदेव, घसकपुर के कैलाश राम, बिनदेशरी शर्मा, दशरथ शर्मा, पनदही बासा के उमेश सिंह, प्रभाकर सिंह, सुखदेव सिंह, रंजन सिंह, अशोक सिंह ने बताया कि नदी पार कर वे लोग फुलौत और चौसा जाना पड़ता है। उन लोगो का कहना है उनके गांव में बूथ देना चाहिए ताकि उनलोगों को नदी पार न करना पड़े। इलाज के लिए कंधों का लेना पड़ता है सहारा बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र होने के कारण यहां के लोगों जिदगी काफी मुश्किलों भरी रहती है। इस इलाके में स्वास्थ्य सुविधाओं का भी टोटा है। अगर किसी को इलाज की जरुरत पड़ जाती है तो उसे कंधे पर लाद कर चचरी पुल के सहारे मुख्यालय तक ले जाना पड़ता है। अगर रात में किसी गर्भवती स्त्री को इलाज की जरुरत हो गई तो फिर ईश्वर ही मालिक होता है। इस बावत कई बार रोगी कि जान भी जा चुकी है।

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