सामाजिक जनचेतना को जगाने में लगे हैं कवि दशरथ
लखीसराय। कवि हूं कलम का हथियार रखता हूं, समाज को बदलने का जजबात रखता हूं..। कविता के अखड़पन से समाज क
लखीसराय। कवि हूं कलम का हथियार रखता हूं, समाज को बदलने का जजबात रखता हूं..। कविता के अखड़पन से समाज को बदलने का जज्बा रखने वाले कवि दशरथ महतो तंगहाली में भी सामाजिक कुरीतियों व व्यवस्था के खिलाफ अपनी रचना से जंग जारी रखे हुए हैं। यही कारण है कि श्री महतो की कविता श्रृंगार या वीर रस की न होकर कभी पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर जंगल की चिठ्ठी आई है, तो कभी दहेज प्रथा के विरुद्ध कविता की रचना करते रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम में भले ही कवि दशरथ ने भाग नहीं लिया लेकिन उसके बाद की जिम्मेदारी को वे कविता के माध्यम से जारी रखते हुए निभा रहे हैं। उनके जीवन का मूल मंत्र कविता है। यही कारण है कि घर की बदहाल स्थिति के बावजूद वे अपनी पूरी जिन्दगी कविता में बीता दिए। वर्ष 1965 से कविता लेखन की सनक में लगे हैं। मगही कवि दशरथ ने नशाबंदी के पक्ष में अभियान छेड़ रखा है। निसमां में बलमा मोर झूमो हय गे मैया, दारू पीके रात दिन झगड़ो हय हो बाबू कविता से शराब किस हद ¨जदगी को खराब कर देती है इसे बखूबी प्रस्तुत किया है। इसी तरह जनसंख्या नियंत्रण पर कवि दशरथ ने दू बुतरू हो गेल आर कत्ते दादा, बेवजह फालतू बोझ कहे दादा.., पर्यावरण संरक्षण पर आओ मित्र बचाओ आंचल, मां का आंचल, मां का आंचल.., दहेज प्रथा पर बेटी बोलल मैया, जैसे बोलल गैया, कौन खुट्टा बांधले माय, मार देत कसइया कविता से सामाजिक विसंगतियों पर प्रहर किया है। कविता के माध्यम से समाज में जागृति लाने को लेकर कवि दशरथ को गोपाल ¨सह नेपाली राष्ट्रीय शिखर सम्मान, श्री नंदन शास्त्री स्मृति सम्मान, महाकवि योगेश मगही सम्मान से नवाजा गया है। लखीसराय जिले के महिसोना निवासी कवि दशरथ अब भी अपनी रचनाओं से समाज में बदलाव लगाने के लिए संघर्षरत हैं।