पर्यावरण व जल संरक्षण का संदेश देता है छठ
लखीसराय। भगवान भास्कर की आराधना और लोक आस्था का महापर्व छठ अनुष्ठान नहीं बल्कि स्वच्छ पया
लखीसराय। भगवान भास्कर की आराधना और लोक आस्था का महापर्व छठ अनुष्ठान नहीं बल्कि स्वच्छ पर्यावरण का संदेश देता है। गांव की गलियों से लेकर शहर के चौक-चौराहों तक प्रकृति के साथ छठ की छटा निखरती है। घर से लेकर घाट तक लोक सरोकार और मेल मिलाप का अछ्वूत नजारा देखने को मिलता है। यह पर्व वैज्ञानिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक समरसता एवं एकजुटता को बल प्रदान करता है। मान्यता है कि इस पवित्र पर्व में भगवान भाष्कर की पूजा अर्चना से छठ मइया सबों की मन्नतें पूरी करती है। इस व्रत की पवित्रता आधुनिक युग में स्वच्छता मिशन को पीछे छोड़ देता है। छठ व्रत की हर रस्म प्रकृति और स्वास्थ्य से जुड़ी है। इस पर्व में जल, नदी, तालाब और सरोवर को संरक्षित करने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी प्रेरित करता है। पर्व के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों से नारी सशक्तिकरण, प्रकृति संरक्षण सहित कई संदेश मिलती है। छठ मइया की एक गीत रूनकी-झुनकी बेटी मांगीला, मांगीला पठत पंडित दामाद.. गीत सुशिक्षित समाज में बेटियों की महत्ता एवं शिक्षा पर बल देती है। जल व पर्यावरण का संदेश
छठ पर्व में अर्घ्य की महता सर्वविदित है। यह पर्व विलुप्त हो रहे तालाब, आहर, पोखर और नदियों को जीवन दान के लिए प्रेरित करता है। जो प्राकृतिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
स्वस्थ समाज का देता है संदेश
इस पर्व की स्वच्छता पहली शर्त है। मान्यता है कि व्रत के दौरान स्वच्छता का ख्याल नहीं रखने से छठ मइया नाराज हो जाती है। यह अकेला ऐसा लोक पर्व है जिसमें उगते एवं डूबते सूर्य को बगैर किसी आडंवर व दिखावा के श्रद्धा के साथ आराधना की जाती है। इस पर्व के शुरू होते ही स्वच्छता के प्रति लोगों की मानसिकता व आदतें स्वत: बदल जाती है।
उपकरणों का प्रयोग वर्जित
छठ में प्रसाद के लिए छोटे-बड़े उपकरणों का प्रयोग वर्जित है। मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद तैयार होता है। आम की सूखी लकड़ी बतौर जलावन के रूप में उपयोग किया जाता है।कोयला या गैस चूल्हे का उपयोग व्रती नहीं करती है। छठ पर्व सूर्य की उर्जा की महत्ता के साथ जल और जीवन के संवेदनशील रिश्ते को संजोता है। कुटीर उद्योग के लिए वरदान
इस पर्व में बांस के सुप, डालिया, मिट्टी के चूल्हे, मिट्टी का दीया, ढकना, अगरबत्ती सहित अन्य सामग्री बड़ा महत्व रखता है। छठ के मौके पर बगैर किसी सरकारी सहायता के इन कुटीर उद्योगों को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन मिलता है। खासकर गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले हुनरमंदों को यह पर्व समाज में स्थान दिलाता है।
पूजन सामग्री का है विशेष महत्व
आचार्य परमानंद पांडेय ने कहा कि भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ महापर्व छठ में प्रयोग होने वाले सामग्रियों की अपनी विशेषता और महत्ता है। सूर्य को अर्घ्य देने एवं पूजन सामग्री रखने के लिए सूप का प्रयोग किया जाता है। बांस से बने सूप का प्रयोग इस पर्व में होता है। सूर्य से वंश में वृद्धि होने के साथ उसकी रक्षा के लिए बांस से बने सामग्री का प्रयोग पूजन के दौरान किया जाता है। अर्घ्य के दौरान ईख को रखकर पूजा की जाती है जो आरोग्यता का सूचक माना जाता है। प्रसाद के रूप में आंटा से बना ठेकुआ समृद्धि का धोतक है। तो मौसमी फल मनोकामना प्राप्ति का सूचक माना जाता है।