ईमाम हुसैन के शहादत की याद में मनाया जाता है मुहर्रम
किशनगंज : आज मुहर्रम माह का दसवीं है। ईमाम हुसैन के शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जात
किशनगंज : आज मुहर्रम माह का दसवीं है। ईमाम हुसैन के शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। जिसे मुस्लिम पूरी दुनिया में मनाते हैं। ईमाम हुसैन अल्लाह के रसूल (मैसेंजर) पैगंबर मोहम्मद सलल्लाह -ओ- अलैह वसल्लम के नाती थे। मोहर्रम हिजरी संवत का प्रथम महीना है। मुहर्रम एक महीना है, जिसमें शिया समुदाय के लोग दस दिन तक इमाम हुसैन की शहादत को याद कर मातम करते, रोजा रखते और तिलावत करते हैं। वहीं सुन्नी समुदाय के लोग भी ईमाम हुसैन की शहादत की याद में रोजा रखते, कुरान की तिलावत करते और ताजिया, अखाड़ा निकाल कर इनकी शहादत को याद करते है। इस संबंध में विस्तार से जानकारी देते हुए कारी अशद रजा ने बताया कि हजरत-ए-अली रजी अल्लाहो तोआला अन्हो के इंतकाल के बाद हजरत आमिर माविया खलीफा बने। खलीफा हजरत आमिर माविया के इंतेकाल के बाद यजीद तख्त पर बैठ गए। मोहम्मद साहब की वफात (दुनिया से रुखसत) के लगभग 50 वर्ष बाद इस्लामी दुनिया में घोर अत्याचार का समय आया। मक्का से दूर सीरिया के बादशा यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया। यजीद का काम करने का तरीका बादशाहों जैसा था। तब इस्लाम इसका आदी नहीं था। इस्लाम में बादशाहत की कल्पना नहीं है। जमीन-आसमान का एक ही'बादशाह'अल्लाह माना जाता है। यजीद बहुत ही जालिम, शराबी, हलाल को हराम, हराम को हलाल करने वाला शासक था। तख्त पर बैठते ही यजीद ने अपने बैथ (मुरीद) के लिए कासिर (मुखबिर) को भेज कर हजरत इमाम हुसैन पर दबाव डालने लगा। मक्का में बैठे पैगंबर मोहम्मद सलल्लाह -ओ- अलैह वसल्लम के नाती ईमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने से इनकार कर दिया, जो यजीद को नागवार गुजरा। हजरत ईमाम हुसैन ने इस्लाम के बचाव के लिए अपने पूरे खानदान को यजीद के हाथों शहीद होने दिया और इस्लाम के खातिर अपने आप को भी कुर्बान कर दिए। लेकिन वक्त शहादत भी हजरत ईमाम हुसैन को दिन -ए- इस्लाम को खास कर नमाज को नहीं छोड़ा। मोहर्रम के 10 वीं तारीख व जुमा के दिन वक्त जुमा के नमाज की हालत में सजदा में हजरत ईमाम हुसैन शहीद हुए। इनकी शहादत ने तमाम मुसलमानों को यह संदेश दिया कि नमाज हर बुराईयों से दूर भगाता है इसलिए नमाज पढ़ो और बुराइयों से दूर रहो।