हाथी पर चढ़कर वोट मांगने आते थे प्रत्याशी
किशनगंज। 60 के दशक में चुनाव प्रचार के तौर तरीके वाकई हैरान करने वाले हैं। उस समय न
किशनगंज। 60 के दशक में चुनाव प्रचार के तौर तरीके वाकई हैरान करने वाले हैं। उस समय न तो प्रचार के इतने साधन थे और न ही नेताओं के बीच इतनी कटुता। आम आदमी की तरह नेता मतदाताओं के बीच पहुंचते थे। बेहद सहज और शालीन होकर वोट मांगते थे। 1962 के विधानसभा चुनाव को याद कर छत्तरगाछ निवासी 85 वर्षीय गोजन अली बताते हैं कि उस समय चुनाव प्रचार के लिए इतने साधन नहीं थे। सड़कों की हालत भी अच्छी नहीं थी। उस चुनाव में मुहम्मद हुसैन आजाद हाथी पर सवार होकर गांव गांव प्रचार करने जाते थे। उस समय माइक जैसा साधन भी नहीं था तो टीना का बना भोंपू से ही लोगों को संबोधित करते थे।
पहले चुनाव प्रचार के लिए कोई सभा पूर्व नियोजित नहीं होती थी। सार्वजनिक स्थान या जहां भीड़ देखी, वहीं प्रत्याशी अपनी बात कहने पहुंच जाते थे। सप्ताह में दो दिन बुधवार और शनिवार को लगने वाली छत्तरगाछ बाजार में चुनाव प्रचार होता था। एक बार इसी तरह छत्तरगाछ बाजार में मुहम्मद हुसैन आजाद के पहुंचते ही भीड़ जुट गई। वे हाथी से नीचे उतरे और एक बैलगाड़ी पर चढ़कर खड़े हो गए। बैलगाड़ी पर खड़े होकर जनता से समर्थन मांगा। 60-70 के दशक में चुनाव लड़ने वाले नेता गांव के कुछ खास लोगों के पास आते थे। उन जिम्मेदारों की बात बहुत लोग मानते थे। शिक्षा की भी कमी थी। वह जिसके पक्ष में होते थे, पूरे गांव का वोट उन्हीं के पक्ष में जाता था। नेताओं के करीबी बदनामी के डर से ठेकेदारी करने जैसे कामों से भी दूर रहते थे। अब तो सब कुछ बदल गया। एक ही घर में लोग अलग-अलग नेताओं को मतदान कर रहे हैं। सियासत ने परिवारों को भी तोड़ दिया है।
चुनाव की तिथि करीब आता था तो गांव में एक बैठक होती थी। उसमें लोग जात-पात से उपर उठकर सर्वसम्मति से एक निर्णय लेते थे। जिसमें अपने गांव समाज की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उसकी निदान के लिए अच्छे गुणवान उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने की सहमति बनती थी। आज स्थिति बिल्कुल उलट है।