मधुमक्खियों की धुन पर रुकेगी हाथियों की मौत, जानिए कैसे
मधुमक्खियों की धुन पर हाथियों की मौत रुकेगी। एनएफ रेलवे के दायरे में 27 स्थलों को चिह्नित कर रिकॉर्डिंग बजाई जा रही है।
किशनगंज [सागर चन्द्रा]। किशनगंज-गुवाहाटी रेलखंड के दायरे वाले डुआर्स (तराई क्षेत्र) में ट्रेन से कटकर हाथियों की हो रही मौत नॉर्थ फ्रंटियर (एनएफ) रेलवे के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। हादसे पर अंकुश के लिए रेलवे ने नई पहल की है जो काफी कारगर साबित हो रही।
हाथियों के आवागमन वाले 27 स्थानों को चिह्नित कर वहां पर स्पीकर लगाए गए हैं। स्पीकर के जरिए मधुमक्खियों की भनभनाहट भरी आवाज प्रसारित की जा रही है। उस आवाज से हाथियों के पांव बरबस दूसरी ओर मुड़ जाते हैं। ट्रेन संतुलित रफ्तार से ट्रैक पर होती है और हाथी अपने दायरे में। इस तरह हादसा टाला जा रहा है। इस प्रयोग की शुरुआत रंगिया संभाग से हुई और परिणाम सकारात्मक रहा। अब प्रयोग के विस्तार की गुंजाइश बढ़ गई है।
दरअसल, हाथियों को मधुमक्खियों के भिनभिनाने की आवाज पसंद नहीं। उपकरण से भिनभिनाहट भरी आवाज सुनते ही वे अपना रास्ता बदल देते हैं। इस तरह खतरे वाली राहों में भिनभिनाहट की रिकॉर्डिंग लगाकर हाथियों के आवागमन को नियंत्रित किया जा रहा है।
किशनगंज-गुवाहाटी रेलखंड का डुआर्स इलाका हाथियों के लिए मशहूर है। वहां एलीफेंट कॉरिडोर है। उस कॉरिडोर से होकर गुजरने वाली ट्रेनों की चपेट में अक्सर हाथी आ जाते हैं। पिछले दस वर्षों में कुल 61 हाथियों की मौत हो चुकी है। हादसे के स्थायी समाधान के लिए रेलवे ने कई प्रयोग भी किए।
हाथियों के रेलवे लाइन पार करने के समय का आकलन कर ट्रेनों के परिचालन से संबंधित समय सारिणी में भी बदलाव किया गया। रात में गुजरने वाली ट्रेनों की गति कम की गई, लेकिन अपेक्षित नतीजा नहीं मिला। इसी दौरान केन्या में मधुमक्खियों की आवाज के प्रयोग की जानकारी रेलवे को मिली। उस प्रयोग पर अमल की सहमति बनी।
एनएफ रेलवे के सीपीआरओ प्रणव ज्योति वर्मा बताते हैं कि चूंकि हाथी भारतीय रेल का शुभंकर भी है, लिहाजा चिंता कुछ ज्यादा ही है। बहरहाल इस नए प्रयोग के जरिए हाथियों को बचाने का प्रयास कारगर साबित हो रहा है।