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हक और सच्चाई के खातिर शहीद हुए हुसैन

संवाद सूत्र, कोचाधामन (किशनगंज) : मुहर्रम (योम ए असूरा) को लेकर क्षेत्र में काफी चहल पहल ह

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Sep 2018 12:14 AM (IST)Updated: Thu, 20 Sep 2018 12:14 AM (IST)
हक और सच्चाई के खातिर शहीद हुए हुसैन
हक और सच्चाई के खातिर शहीद हुए हुसैन

संवाद सूत्र, कोचाधामन (किशनगंज) : मुहर्रम (योम ए असूरा) को लेकर क्षेत्र में काफी चहल पहल है। इसे लेकर मुहर्रम की दसवीं तिथि को प्रखंड के कन्हैयाबाड़ी, बिशनपुर, काशीबाड़ी, सतभीट्टा, दुर्गापुर, सराय, असूरा एवं अलता सहित कई अन्य जगहों पर पहलाम किया जाता है। जिससे बड़ी संख्या में लोग शामिल होकर लाठी भाजते एवं करतब दिखाते हैं। आज से 14 सौ साल पहले माहे मुहर्रम की दसवीं तिथि को करबला के मैदान (इराक) में हक और सच्चाई के खातिर लड़ते हुए हजरत इमाम हुसैन आलीमकाम शहीद हो गए थे। इतने अरसे गुजरने के बाद भी हर साल मुहर्रम की दसवीं तिथि आलम-ए-इस्लाम में आन, बान, शान के साथ लोगों के दिलों-दिमाग में ताजा हो जाता है। मुहर्रम इस्लामी वर्ष का पहला महीना है। इस महीने का मजहबे इस्लाम में विशेष महत्व है। आज से 14 सौ वर्ष पूर्व हक और सच्चाई के खातिर 10 मुहर्रम (योम ए असूरा) को करबला के मैदान (इराक) में हजरत इमाम हुसैन आलीमकाम अपने खानदान व अपने 72 साथियों के साथ यजीद बिन माविया के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए थे। तभी से यह घटना आलम-ए-इस्लाम में योम ए आसूरा के नाम से याद किया जा रहा है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग हजरत हुसैन की याद में रोजा रखते हैं। अपने माल की सदका खैरात करते हैं, और हजरत इमाम हुसैन ने जो मैसज दिए हैं उस पर अमल करने के लिए कटिबद्ध होते हैं।-

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हुसैन और यजीद में क्यों हुई जंग -

इस्लामी हुकूमत अभी 50 साल भी पूरे नहीं किए थे, कि अरब में यजीदी हुकूमत कायम हो गई। दौलत, ताकत व नफरत के हुकूमत में यजीद डूबा हुआ था। अपनी हुकूमत को यजीद बुराई की पहचान बना रखा था। यजीद बिन माविया यह चाहता था कि नवासा-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन उन से बैत (मुरीद) हो जाए ताकि उसकी सारी हरकतें आगे की तारीख में इस्लाम के नाम से याद की जा सके ।लेकिन हजरत इमाम हुसैन ने इरादा किया कि सच्चाई और झूठ, जुल्म व मजलूम, हक और बातील में फर्क बताकर दुनिया को यह बता देंगे। इसके बाद हजरत इमाम हुसैन यजीद बिन माविया से बैत (मुरीद)नहीं हुए। इसी बात को लेकर हजरत इमाम हुसैन और यजीद के बीच जंग छिड़ गई। हजरत इमाम हुसैन कि यह लड़ाई जाति नहीं थी बल्कि दीन-ए-इस्लाम को बचाने के खातिर थी। खलीफा यजीद काफी जुल्मकार व ऐय्याश था, जो खाना-ए-काबा पर पत्थर बरसाया, काबे का गलाफ को फाड़ डाला, और कई इस्लाम विरोधी काम को अंजाम दिया था। जंग होने का यह भी एक वजह था।


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