रोजा सिर्फ दिन भर भूखा रखने का नाम नहीं है: कारी मो. सरफराज
खगड़िया। रोजा इस्लाम धर्म के पांच बुनियादी अरकानों (पीलरों) में से एक रुकन (पीलर) है। रोजा भी अल्लाह
खगड़िया। रोजा इस्लाम धर्म के पांच बुनियादी अरकानों (पीलरों) में से एक रुकन (पीलर) है। रोजा भी अल्लाह के हुक्मों में से एक हुक्म है। रोजा हर बालिग मर्द- औरत पर फर्ज है। बीमार और मुसाफिर को रोजा रखने में ज्यादा परेशानी बढ़ने का खतरा हो तो रोजा न रखें। लेकिन, बाद में रोजा को पूरा करना फर्ज है। रोजा नाम है सेहरी से इफ्तार तक अल्लाह के डर से खाना, पीना और तमाम बुराइयों से बचने का। जिस तरह रोजा में दिन भर खाना, पीना आदि हराम है, उसी तरह बदन के दूसरे हिस्सा से भी कोई भी बुरा काम करना हराम है। रोजा सिर्फ पेट को दिन भर भूखा रखने का नाम नहीं है, बल्कि पूरे बदन का रोजा होता है। हाथ का रोजा है किसी कमजोर पर जुल्म न करें। हाथ से कोई बुरी चीज न छुएं। आंख का रोजा है कि आंख से कोई बुरी या गंदी चीज न देखें। कान का रोजा है कान से गलत या बुरी बात न सुनें। दिल दिमाग का रोजा है, बुरी बात सोचने से बचें। रोजा का दूसरा मकसद यह भी है कि अमीर आदमी भी जब रोजा रखता है तब जाकर उसे गरीब की भूख की परेशानी समझ में आती है कि भूख क्या है। जब गरीब भूखा रहता है तो उसको कितनी तकलीफ होती होगी। जब भूख की तकलीफ का एहसास होगा तो गरीबों की मदद करने का शौक पैदा होगा। रोजा रखने से रुहानी फायदा के साथ-साथ जिस्मानी स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। मुहम्मद साहब ने फरमाया कि जो भी व्यक्ति ईमान के साथ अल्लाह को राजी करने के लिए रोजा रखें, उसके पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिया जाता है। जो व्यक्ति रोजा में झूठ, गीबत, चुगली से नहीं बचता है उसको दिन भर भूखा रहने से कोई फायदा नहीं। रोजा की हालत में कई जायज चीज भी हराम हो जाता है। जैसे, खाना, पीना आदि।
खासतौर से रोजा में तमाम हराम और नाजायज चीजों से बचना जरुरी है।
= कारी मो. सरफराज आलम, जिला महासचिव, जमीयते उलमा-ए-हिन्द, खगड़िया। === ===