ताने सुन-सुन चट्टान बनी 'अभिलाषा'
खगड़िया। कुमारी अभिलाषा। घर- गोगरी जमालपुर। उपलब्धि- साक्षरता कर्मी से शिक्षक बनीं। विशेष्
खगड़िया। कुमारी अभिलाषा। घर- गोगरी जमालपुर। उपलब्धि- साक्षरता कर्मी से शिक्षक बनीं। विशेषता- दिव्यांग होने के बावजूद हार नहीं मानना।
कभी समाज से ताने सुनने वाली अभिलाषा अब उसी समाज में सम्मानित नजरिये से देखी जाती हैं। उनकी कहानी आज हर किसी के लिए प्रेरणा है, जिसने दिव्यांगता को मात देकर अपनी हर अभिलाषा को पूरी की। लोगों ने जितने ताने मारे वह 'अभिलाषा' चट्टान की तरह मजबूत होती गई।
एक पैर से दिव्यांग कुमारी अभिलाषा 2000 में साक्षरता से जुड़ीं। यह वह दौर था जब बेटियां समाजिक कुरीतियों को तोड़ते हुए बेटों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की दहलीज पर आ चुकी थीं। हालांकि तब भी पुरुष प्रधान समाज उन्हें पर्दे के पीछे धकेलने की हर जुगत कर रहा था। अभिलाषा के शब्दों में- याद है, जब वह साक्षरता से जुड़ी तब लोग कहते थे कि यह लड़की क्या कर सकेगी। बहुत प्रकार के ताने सुनने पड़े। घर-परिवार पर भी दबाव बना। डराया भी गया। एक तो लड़की, ऊपर से दिव्यांग..। लोगों के ताने जितनी बार सुनती, उतना ही बेहतर करने और अपनी एक पहचान बनाने का संकल्प मन में मजबूत होता। लिहाजा अपने काम में लगी रहती थीं। गांव-गांव, टोले, टोले, शहर-शहर जाकर साक्षरता का अलख जगाना काम था। 'पढ़ना लिखना सीखो मेहनत करने वालों' यह गीत गुनगुनाती रही। इसके साथ खुद भी पढ़ाई जारी रखा। धीरे-धीरे समाज में बदलाव आया। उसके कार्य की सराहना होने लगी। बेहतर कार्य पर मुख्यमंत्री और राज्यपाल के हाथों सम्मानित हुई तो समाज में भी सभी सम्मान देने लगे। यह सम्मान 2004 में मिला था। अभिलाषा बताती हैं कि साक्षरता मिशन से जुड़ने के साथ ही उसके मन में शैक्षणिक कार्यो से जुड़े रहने की इच्छा हुई। मन में ख्याल आया कि शिक्षक बनकर समाज की अच्छी सेवा की जा सकती है। बच्चों को सही दिशा देने के सशक्त माध्यम शिक्षक ही होते हैं। सो उसने साक्षरता कार्य के साथ बीएड की पढ़ाई की और आज वह बेगूसराय के साहेबपुर कमाल के स्कूल में शिक्षिका हैं।