जलमीनार का पानी सड़कों पर बहता है
खगड़िया। 'नदियों का नैहर' खगड़िया आर्सेनिक और आयरन की चपेट में है। यहां के लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया
खगड़िया। 'नदियों का नैहर' खगड़िया आर्सेनिक और आयरन की चपेट में है। यहां के लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने को लेकर पीएचइडी विभाग की ओर से जगह-जगह जलमीनार स्थापित किए गए हैं। परंतु, यह हाथी के दांत बनकर रह गए हैं। यहां यह बताते चलें कि गंगा नदी किनारे अवस्थित परबत्ता प्रखंड आर्सेनिक की गिरफ्त में है। यहां पानी में 100 से 110 पीपीबी (पार्ट पर बिलीयन) तक आर्सेनिक पाया गया है।
खैर, प्रखंड मुख्यालय परबत्ता के लोगों को शुद्ध पानी मुहैया कराने को लेकर वर्ष 2006-07 में जलमीनार बनाया गया। प्रखंड कार्यालय परिसर के पूर्वी छोड़ पर यह जलमीनार खड़ा हुआ। इसकी क्षमता 7700 गैलन की है। जबकि लागत खर्च 80.66 रुपये। लोगों को शुद्ध पानी मिले, इसको लेकर जलमीनार के साथ-साथ पाइप लाइन बिछाए गए। जल स्तम्भ भी लगाया गया। लेकिन, यह बेकार साबित हुआ है। हालत यह है कि जब
जलमीनार से पानी छोड़ा जाता है, तो जर्जर पाइप लाइन से पानी प्रखंड कार्यालय परिसर, बाजार में 'पसर' जाता है। जलजमाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। स्थिति यह है कि 11 वर्ष बाद भी जलमीनार का पानी लोगों को नसीब नहीं है। परबत्ता बाजार के दुकानदार राजेश कुमार ने कहा कि जब जलमीनार बना था, तो लगा कि अब शुद्ध पानी नसीब होगा। परंतु, स्थिति उल्टी हो गई। जब इसे चालू किया जाता है, तो पानी सड़कों पर बहता है। लोगों को जलजमाव का सामना करना पड़ता है। कोट
' जिले में कुल छह जलमीनार है। सभी काम कर रहे हैं। पाइप लाइन में लिकेज आने पर समस्या होती है। परंतु, शिकायत आने पर उसे ठीक करा दिया जाता है। '
= राजीव कुमार, कार्यपालक अभियंता, पीएचइडी, खगड़िया। इंसेट
12 वर्ष से कर रहे हैं वर्ष जल संग्रह
खगड़िया: संकट सामने आने पर रास्ता भी निकल आता है। खगड़िया बाढ़ का इलाका है। बाढ़ के समय सबसे बड़ी परेशनी शुद्ध पानी का रहता है। ऐसे में खगड़िया के लोगों ने मेघ पाइन अभियान के सहयोग से वर्षा जल संग्रह का कार्य वर्ष 2007 की बाढ़ में शुरू किया। इसके बाद से बाढ़ आए अथवा नहीं, फरकिया के लोग बारिश के मौसम में वर्षा जल संग्रह का कार्य जारी रखे हुए है। लगभग आठ सौ परिवार वर्षा जल संग्रह करते हैं। वे वर्षा जल का उपयोग पीने में, खाना बनाने में करते हैं। सोनमनकी के सखीचंद्र सदा कहते हैं- अब बाढ़ आने पर शुद्ध पानी की समस्या नहीं रहती है। वर्षा जल का संग्रह करते है। इसका उपयोग पीने में और खाना बनाने में करते हैं। अब बाढ़ के समय जलजनित बीमारियों में कमी आई है। कुछ ऐसी ही बात सूरज नगर के राजकुमार सदा, नेपाल टोला के सागर सदा कहते हैं।
कोट
'उत्तर बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में बाढ़ के समय सबसे बड़ी समस्या शुद्ध पानी मुहैया कराना है। ऐसे में वर्षा जल संग्रह वरदान है।इसमें नाममात्र का खर्च है। बाढ़ के बाद भी यह काम आता है। यह पानी आयरन और आर्सेनिक मुक्त होता है।'
= एकल्वय, मेघ पाइन अभियान।
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