नहरों का बिछा जाल, फिर भी पानी का अकाल
खगड़िया। बेलदौर में मक्का की खेती 12 हजार हेक्टेयर में की जाती है। इन दिनों किसान मक्के
खगड़िया। बेलदौर में मक्का की खेती 12 हजार हेक्टेयर में की जाती है। इन दिनों किसान मक्के की बुआई करने के बाद फसल की ¨सचाई को लेकर परेशान है। लेकिन नहर में पानी ही नहीं है। जिससे इसबार भी किसानों को नहर से सस्ती ¨सचाई की सुविधा नहीं मिल पा रही है। ¨सचाई विभाग नहर के पानी को खेतों तक पहुंचाने के लिए छहर(नाला) को दुरुस्त नहीं कराया है। ऐसे में नहर का पानी खेतों तक नहीं पहुंच सकेगा। पूरे अंचल क्षेत्र में एक भी स्टेट बो¨रग का नहीं होना किसानों के प्रति सरकार की हमदर्दी को साफ दर्शाती है। पर्याप्त मात्रा में ¨सचाई को लेकर बो¨रग नहीं रहने से एक बो¨रग के सहारे लगभग 20 से 25 एकड़ भूमि की ¨सचाई करना लोगों की मजबूरी बन गई है। किसान खेतों की ¨सचाई चार से पांच बार करते हैं। जिसमें लगभग आठ हजार रुपये खर्च करना पड़ता है।
नहीं पहुंच रहा खेतों तक नहर का पानी
70 के दशक में ¨सचाई विभाग की ओर से कोसी नहर ¨सचाई परियोजना के तहत प्रखंड क्षेत्र में नहरों का जाल बिछाया गया था।जिसमें माली प्रशाखा के तहत कैंजरी से गवास तक, जिसका अस्तित्व समाप्त हो चुका है।
दूसरा सिनवारा से दिघौन तक, बेलदौर प्रशाखा के तहत बोबिल से पनसलवा सीमा में लगभग आठ किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण कराया गया। नहर के पानी को खेतों तक पहुंचाने के लिए नाला का निर्माण कराया गया। शुरुआती दौर में नहर से किसानों को सस्ती ¨सचाई भी उपलब्ध हुई। 70 से 80 रुपये प्रति एकड़ की दर से खेतों में ¨सचाई होती थी। ¨सचाई विभाग का अनुमंडल कार्यालय बेलदौर में था। लेकिन 1987 के बाढ़ के बाद नहर जीर्ण- शीर्ण हो गया। ¨सचाई विभाग ने अनुमंडल कार्यालय को बेलदौर से हटाकर मुरलीगंज, मधेपुरा शिफ्ट कर दिया। 2015 में नहर को दुरुस्त गया किया। लेकिन छहर अभी भी जीर्ण- शीर्ण पड़ा हुआ है। अभी भी नहर का पानी खेतों तक नहीं पहुंच पा रहा है। बेलदौर प्रशाखा नहर के उधहा बासा क¨टग के पास नहर जीर्ण-शीर्ण रहने से बेला-नौवाद के किसानों को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है।
क्या कहते हैं अधिकारी
¨सचाई अनुमंडल कार्यालय मुरलीगंज के जेई विनोद कुमार ने बताया कि
नहर का पानी खेतों तक पहुंचाने के लिए नहर के छहर को दुरुस्त किया जा रहा है। फरवरी माह के दूसरे सप्ताह से नहर में पानी छोड़ दिया जाएगा।