यहां रोज गंगा में प्रवाहित हो रहा पांच सौ मन लकड़ी का राख
फोटो- 13 केएटी- 3 कैचवर्ड विडंबना - जिले के मनिहारी सहित तीन गंगा घाटों पर औसतन 30 से
फोटो- 13 केएटी- 3
कैचवर्ड : विडंबना
- जिले के मनिहारी सहित तीन गंगा घाटों पर औसतन 30 से 35 शवों का होता है दाह
- विद्युत शवदाह गृह नहीं होने से अब भी लकड़ियों के भरोसे शवों का होता है अंतिम संस्कार
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नप की बैठक में लिए गए प्रस्ताव के मद्देनजर विद्युत शवदाह गृह के निर्माण की कवायद शुरु है। कार्यपालक के स्तर से सीओ को पत्र लिखा गया था। इसके लिए जमीन चिन्हित हो चुका है। अब आवंटन के लिए नगर विकास विभाग को लिखा गया है। जल्द ही विद्युत शव दाह गृह के निर्माण की उम्मीद है।
ममता देवी, मुख्य पार्षद, नपं, मनिहारी।
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कोट- इस मामले को लगातार वे विधानसभा सहित अन्य उचित फोरम पर उठाते रहे हैं। निश्चित रुप से पारंपरिक तरीके से शव दाह होने से गंगा प्रदूषित हो रही है। वे विद्युत शव दाह गृह के निर्माण कराने को लेकर भरसक प्रयास कर रहे हैं। जल्द ही सकारात्मक परिणाम सामने आने की उम्मीद है।
मनोहर प्रसाद सिंह, विधायक, मनिहारी।
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कोट- यह गंगा की स्वच्छता के साथ सरकार की हरियाली योजना को भी बड़ा झटका है। विद्युत शवदाह गृह नहीं होने के चलते जहां शव दाह के लिए वृक्षों की कटाई हो रही है, वहीं इसके राख से गंगा प्रदूषित हो रही है। साथ ही शव दाह के दौरान उससे उत्पन्न गैस मानव स्वास्थ्य के लिए भी अहितकर है। उनके स्तर से किए गए सर्वे में केवल मनिहारी घाट पर सौ क्विटल लकड़ी शवदाह में नित्य जल रही है।
टी एन तारक, पर्यावरण विद, कटिहार।
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प्रीतम ओझा, संवाद सूत्र, मनिहारी (कटिहार) : नमामि गंगे व जल, जीवन, हरियाली योजना के बीच कटिहार जिले में कुर्सेला से मनिहारी व अमदाबाद तक नित्य केवल शवदाह के चलते पांच सौ मन लकड़ी का राख गंगा में प्रवाहित हो रही है। मनिहारी के साथ-साथ काढ़ागोला व कुर्सेला में भी गंगा घाट पर विद्युत शव दाह नहीं होने से रोज आज भी अपने मृत परिजनों का अंतिम संस्कार पारंपरिक ढंग से करते हैं। इससे गंगा नदी ही नहीं पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंच रहा है।
केवल मनिहारी नित्य होता है औसतन 12 शवदाह, एक शवदाह में जलते हैं चार क्विटल लकड़ी
पूरे जिले में अलग-अलग गंगा घाटों पर औसतन तीस से ज्यादा शव अंतिम संस्कार के लिए पहुंचते हैं। खासकर मनिहारी गंगा घाट पर कोसी व पूर्णिया प्रमंडल से लोग अपने मृत परिजन के शव दाह को पहुंचते हैं। मनिहारी में ही केवल 12 से ज्यादा शवदाह नित्य होता है। मान्यता के अनुसार एक शव के दाह में नौ मन से 11 मन तक लकड़ी लगता है। यानि तकरीबन चार क्विटल लकड़ी से एक शव का अंतिम संस्कार होता है। ये राखें अंतत: गंगा में प्रवाहित हो जाती है। वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होने के चलते इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इतनी लकड़ियों की खपत कहीं न कहीं वन की कटाई का भी एक बड़ा कारण बन रहा है।