पनामा बिल्ट ने तोड़ दी केला किसानों की कमर
कटिहार। केलांचल के नाम से मशहूर कोढ़ा प्रखंड परिक्षेत्र के किसान कभी केला की खेती से अप
कटिहार। केलांचल के नाम से मशहूर कोढ़ा प्रखंड परिक्षेत्र के किसान कभी केला की खेती से अपनी सेहत बदली थी। आज पनामा बिल्ट नामक रोग के चलते किसानों की कमर ही टूट गई है। स्थिति यह है कि किसान अब चाहकर भी केले की खेती करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। बता दें कि लगभग चार दशक से यहां के मेहनतकश किसानों ने केला खेती कर न सिर्फ अपनी आर्थिक दशा को सुधारा बल्कि किसानी को एक नया आयाम दिया। परंतु गत पांच वर्षों से टिशू कल्चर केला के पौधा में पीलिया (पनामा बिल्ट) रोग के संक्रमण से हजारों एकड़ में लगी केले की फसल बर्बाद हो चुकी है। केले की बर्बादी देख जहां एक ओर किसान जार जार आंसू रोने पर विवश है, वहीं अब वे केले की खेती करने को हिम्मत तक नहीं जुटा पाते हैं। किसान विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी बैंक के कर्ज के शिकंजे में फंसता जा रहे है। हालांकि राज्य सरकार टिश्यू कल्चर खेती को बढ़ावा देने के लिए करीब 62 हजार प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान दे रही है, लेकिन पनामा बिल्ट रोग का समुचित रोकथाम नहीं होने से किसान इस खेती से तौबा करने लगे हैं। कभी पड़ोसी देश नेपाल सहित पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश के सभी बड़े-बड़े शहरों सहित दिल्ली, झारखंड, उड़ीसा, हरियाणा आदि राज्यों में यहां से केला जाता था। इस आय से यहां के कृषकों ने अपने बच्चों की उच्च शिक्षा, अच्छा घर सहित अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने की दिशा में अग्रसर हो रहा था, किसान मजदूरों के बीच खुशहाली का आलम था। परंतु अब खेत में लगी लहलहाती केला की फसल पर पनामा रोग का कहर टूट रहा है। किसान के पास बेबसी के सिवा कोई चारा नहीं दिख रहा है। पीलिया रोग के रोकथाम के सारे वैज्ञानिक विधि बेकार साबित हो रहे हैं। किसान बाजार में उपलब्ध कई तरह के रासायनिक दवा हजारों रुपए की कीमत में खरीद खेत में डाल रहे हैं, लेकिन उससे कोई फायदा फसल को होता नहीं दिख रहा है। किसान पवन कुमार चौधरी, महेश प्रसाद मेहता, मदन मेहता ने बताया कि समय रहते इस रोग का समुचित रोकथाम के लिए वैज्ञानिक तौर पर जब तक कोई दवा विकसित नहीं की जाएगी तब तक किसानों के लिए यह खेती करना संभव नहीं होगा।