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लॉकडाउन से परिवार में कायम हुई पुरानी परंपरा

कटिहार। कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर लगाए गए लॉकडाउन में लोगों की दिनचर्या पूरी तरह से बदल गई। लोगों को महीनों अपने घरों में ही रहना पड़ा। बच्चे बुजुर्ग एवं युवा सभी वर्षों बाद साथ मिलकर रहे। इस व्यवस्था ने परिवार में पुरानी परंपरा कायम की है जब परिवार के अधिकांश सदस्य एक साथ मिलकर रहते थे।

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Jun 2021 06:38 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jun 2021 06:38 PM (IST)
लॉकडाउन से परिवार में कायम हुई पुरानी परंपरा

कटिहार। कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर लगाए गए लॉकडाउन में लोगों की दिनचर्या पूरी तरह से बदल गई। लोगों को महीनों अपने घरों में ही रहना पड़ा। बच्चे, बुजुर्ग एवं युवा सभी वर्षों बाद साथ मिलकर रहे। इस व्यवस्था ने परिवार में पुरानी परंपरा कायम की है, जब परिवार के अधिकांश सदस्य एक साथ मिलकर रहते थे।

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शहरीकरण के दौर में संयुक्त परिवार की अवधारणा धीरे-धीरे कमजोर होने लगी। रोजगार, शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवा समेत बेहतर जीवन-यापन को लेकर संयुक्त परिवार धीरे-धीरे बिखरने लगा एवं धीरे-धीरे लोग शहरों में बसने लगे, लेकिन अचानक से आई वैश्विक बीमारी कोरोना सबसे पहले महानगर एवं शहरों में ही फैला। जिसके बाद शहरों में रहने वाला परिवार अपने स्वजनों की सुरक्षा को लेकर गांवों का रूख किया। इस तरह से गांव में एक बार फिर से पुरानी संयुक्त परिवार की अवधारणा जीवंत होने लगी। बुजुर्गों को अपनों का साथ मिला तो बच्चों को बाबा-दादी समेत परिवार के अन्य बड़ों का स्नेह और प्यार।

प्राणपुर के प्रीत नगर गांव निवासी कन्हैया प्रसाद सिंह, रोशना निवासी खुशीलाल गुप्ता, केहूनिया निवासी शिव देव झा, प्रोफेसर चंद्रमोहन मंडल, चंदन मंडल, रवि गुप्ता, हीरा पांडे आदि लोगों का कहना है कि इस बीमारी में एक बार फिर से पुरानी परंपरा लौट आई। युवा पीढ़ी कामकाज के बोझ से दबे होने के कारण बुजुर्गों को समय नहीं दे पा रहे थे। इस कारण बुजुर्गों को यह सूनापन नागवार गुजरता था। लेकिन लॉकडाउन के कारण ठहरे जनजीवन से पुराना अंदाज फिर कायम हो गया। युवा भी परिवार और बच्चों को समय दे रहे हैं। अभिभावकों का मानना है कि गेम-मोबाइल से मनोरंजन करने वाले बच्चों में भी बदलाव दिख रहा है। वे ग्रामीण पृष्ठभूमि से अवगत हो रहे हैं। उनमें अपन रिश्तों को पहचानने की क्षमता विकसित हो रही है। इस दौरान बच्चों की पढ़ाई जरूर प्रभावित हुई है लेकिन ग्रामीण वातावरण में हमलोगों के द्वारा बच्चों को रामायण-महाभारत जैसी कहानियां सुनाई जाती है। ताकि उनमें अपनी सभ्यता-संस्कृति के प्रति लगाव हो सके। वे इसके महत्व को समझें।


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