विशेष - महापर्व को लेकर पारंपरिक रोजगार को मिल रही संजीवनी
फोटो - 26 केएटी - 4 - पारंपरिक रोजगार में जुटे महादलित परिवार के लोग - सूप, टोकर
फोटो - 26 केएटी - 4
- पारंपरिक रोजगार में जुटे महादलित परिवार के लोग
- सूप, टोकरी व डाला की बढ़ी डिमांड लेकिन लगातार बढ़ रहा खर्च
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संजीव राय, संसू हसनगंज (कटिहार) : लोक आस्था का महापर्व छठ के मौके पर सूप, डाला व टोकरी की मांग को लेकर महादलित परिवारों के पारंपरिक रोजगार को संजीवनी मिल रही है। महापर्व की तैयारी को लेकर प्रखंड क्षेत्र के मोहली व मल्लिक समुदाय के लोग बांस से निर्मित सामग्रियों का निर्माण कर रहे हैं। बता दें कि महापर्व को लेकर इस वस्तुओं की काफी डिमांड रहती है और इसकी आपूर्ति प्रखंड से जिले एवं अन्य जिलों तक होती है। महापर्व के बहाने ही सही महादलित परिवारों के इस पारंपरिक रोजगार को संजीवनी मिलती है।
बता दें कि बांस की बढ़ती कीमतों के कारण लगात मूल्य बढ़ने से मुनाफा लगातार कम होता जा रहा है। बांस की कीमतों में बेतहासा वृद्धि के कारण एवं पूंजी के अभाव में डिमांड के अनुरूप सामग्री तैयार करने में इन परिवारों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन रोजगार की किल्लत और समय की डिमांड के कारण लोग पारंपरिक रोजगार को संजोने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। इन परिवार के लोगों को हस्तकलाओं को संजोने एवं इसके विकास को लेकर सरकारी स्तर से सहायता मिलने की उम्मीद है।
पारंपरिक रोजगार को सहेजने की जरुरत :
सूप टोकरी के निर्माण से जुड़े कामगार जगरनाथ राय, छोटू कुमार आदि ने बताया कि यह उनका पारंपरिक रोजगार है। हस्तकला का प्रशिक्षण बचपन से दिया जाता है। लेकिन सरकारी स्तर पर इसे संरक्षित करने की पहल नहीं होने और प्लास्टिक उत्पादों के कारण डिमांड घटने के कारण यह रोजगार अब समयानुकूल हो चुका है। इसे संरक्षित करने और बाजार उपलब्ध कराने को लेकर अगर सकारात्म पहल हो तो निश्चित ही पारंपरिक कलाओं के जरिए बड़ी आबादी को रोजगार मिलेगा।