पहले एकत्रित होकर ग्रामीण सुनते थे नेता की बात
पहले चुनाव में नेताओं की पहचान उनके गांव में आने के बाद लोगों से मिलने पर होती थी। नेताओं के स्वभाव व बोलने के तरीके से लोग उसकी छवि को भांपते थे। बदलते परिवेश को चुनाव दर चुनाव काफी नजदीक से देखते आए 80 वर्षीय रघुनाथ सिंह आज भी मतदान को लेकर उत्साहित हैं। देवहलियां गांव निवासी रघुनाथ सिंह कहते हैं कि अब लोकतंत्र की मजबूती की जवाबदेही आज की नई पीढ़ी के कंधों पर हैं। वह लोभ-लालच देने वाले उम्मीदवारों का विरोध करे।
पहले चुनाव में नेताओं की पहचान उनके गांव में आने के बाद लोगों से मिलने पर होती थी। नेताओं के स्वभाव व बोलने के तरीके से लोग उसकी छवि को भांपते थे। बदलते परिवेश को चुनाव दर चुनाव काफी नजदीक से देखते आए 80 वर्षीय रघुनाथ सिंह आज भी मतदान को लेकर उत्साहित हैं। देवहलियां गांव निवासी रघुनाथ सिंह कहते हैं कि अब लोकतंत्र की मजबूती की जवाबदेही आज की नई पीढ़ी के कंधों पर हैं। वह लोभ-लालच देने वाले उम्मीदवारों का विरोध करे।
वे अतीत में झांकते हुए बताते हैं- पहले समाज में दो ही तरह के लोग होते थे अमीर व गरीब। राजनीति इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती थी। आज जात-पात, ऊंच-नीच की खाई इतनी गहरी हो गई है कि समाज में कटुता आ गई है। नेता जात-पात की बात करके समाज को बांट रहे हैं। इसी का परिणाम है कि समाज में प्रेम और भाईचारा पर नफरत व वैमनस्य भारी पड़ रहा है। कहा कि पहले पूरे गांव के लोग एक जगह एकत्रित होकर नेता को अपनी समस्याओं से अवगत कराते थे। नेता जनता की समस्याओं को गंभीरता से सुनते थे। उसके समाधान के प्रति गंभीर होते थे। जेहन में समस्या आते ही वे उसके समाधान में लग जाते थे। जिससे जनता को भी लगता था कि उनका जनप्रतिनिधि जनता के प्रति वफादार है। बदले परिवेश में इसका लोप हो चुका है। नेता जनता के प्रति पहले जैसे वफादार नहीं रह गए हैं। समाज में कटुता के कारण प्रत्याशी को एक गांव में कई जगह जाना पड़ता है। जितने मुंह उतनी बातें सुनने को मिलती हैं। नेताओं को चुनाव में ही जनता की याद आती है। वे कहते हैं- यह जरूरी है कि हम चुनाव में सोच-समझकर अपने विवेक से मताधिकार का प्रयोग जरूर करें। किसी के भी बहकावे में आकर अपने बहुमूल्य मत को बरबाद न करें।