Move to Jagran APP

बिहार उपचुनाव: भभुआ में कुनबाई जमीन की रखवाली सबसे बड़ी चुनौती

बिहार उपचुनाव के प्रचार क्‍लाइमेक्‍स पर है। भभुआ में कुनबाई जमीन की रखवाली बड़ी चुनौती है। यहां एनडीए व महागठबंधन प्रत्याशियों में टक्कर है। पढ़ें, भभुआ से ग्राउंड जीरो रिपोर्ट।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 08 Mar 2018 10:00 PM (IST)Updated: Fri, 09 Mar 2018 06:41 PM (IST)
बिहार उपचुनाव: भभुआ में कुनबाई जमीन की रखवाली सबसे बड़ी चुनौती

कैमूर [अश्विनी]। गेहूं की बालियां पकने को हैं। किसान चौकस हो खेतों की रखवाली कर रहे। गांवों का कुछ यही नजारा है। कहीं मसूर और खेसारी की फसल कट रही तो कहीं गेहूं की पैदावार का इंतजार है। देश की पहली ग्रीन सिटी होने का गौरव प्राप्त कर चुके भभुआ में खेतों की हरियाली इसके सौंदर्य को और बढ़ा रही।

loksabha election banner

अब फसल हो या सियासत रखवाली तो करनी ही पड़ती है। यहां इसके भी दो रंग दिख रहे। रखवाली भूख मिटाने वाली फसलों की तो दूसरी ओर सत्ता का ताज पहनाने वाले वोटों की। दरअसल, यहां भाजपा विधायक आनंद भूषण पांडेय के निधन के कारण रिक्त हुई इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है, सो सियासी गहमागहमी परवान चढ़ चुकी है।

चुनावी समीकरण बनाने-बिगाडऩे वाले मुद्दों का अभाव

नेता आ-जा रहे हैं, गाडिय़ां दौड़ रही हैं। लाउडस्पीकर पर सुन हे बहिनी के बोल इसका अहसास भी करा रहे। होली का रंग अभी-अभी छूटा है, सो अब मतदाताओं पर सियासी रंग चढ़ाने की कोशिशें अंतिम चरण में हैं। मुद्दे कुछ खास नहीं या यूं कहें कि उस पर आम लोगों के बीच भी कोई चर्चा नहीं है। सियासी खेती में मुद्दों का खाद-पानी अहमियत तो रखता है, पर यहां वैसा कुछ दिख नहीं रहा, जो चुनावी समीकरण बनाने-बिगाडऩे में बहुत कारगर होने की गारंटी दे सके। भ्रष्टाचार, विकास, सद्भाव जैसी बातें मंच की शोभा तो हैं, आमलोगों से पूछिए तो बस मुस्कराते हुए गर्दन नीची कर लेंगे।

हर सवाल का जवाब-हम लोग  भी अपना भविष्य देखेंगे न

मतदाता जागरूक हैं। वोट डालने जरूर जाएंगे, पर किस्मत किसकी गढ़ी जाएगी, ये अनुमान लगाना इतना आसान नहीं। करीब दो लाख सत्तावन हजार मतदाताओं में 1.22 लाख की महिला आबादी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। मर्दाना क्या बोलते हैं, यह दशक-डेढ़ दशक पहले की बात होगी। आज की तारीख में  बस नीलिमा देवी को प्रतीक भर मान लें तो कई सवालों का जवाब मिल जाएगा, काहे...हमरा सोच नइखे का, हम त आपन वोट दिहे जाइब न...। मन में कुछ तो होगा? घुमा-फिराकर कितने ही सवाल करने के बाद बस छोटा-सा जवाब, हमलोग भी अपना भविष्य देखेंगे न। राजनीतिक विश्लेषक अब इसके जो भी मायने निकालें।

सात-आठ हजार वोटों वाले कुनबों की अहमियत बढ़ी

हां, मुद्दों के सुखाड़ में कुनबाई समीकरण से ही सियासी फसल काटने की जुगत लगाई जा रही। कहने को तो मैदान में 17 उम्मीदवार हैं, पर लोगों की मानें तो यहां टक्कर दो राष्ट्रीय पार्टियों के बीच ही है। एक तरफ भाजपा, दूसरी ओर कांग्रेस।

दोनों के ही साथ क्षेत्रीय दलों की अतिरिक्त ताकत। यह समीकरण भी वक्त की धुरी पर घूमता-घूमता फिर अपने पुराने स्वरूप में पहुंच गया है। यानी, भाजपा-जदयू और साथ में लोजपा, रालोसपा।

इधर, कांग्रेस-राजद की जुगलबंदी तो है ही, 'हम' के जीतनराम मांझी नए साथी के रूप में जुड़ गए हैं। यानी, एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला। एनडीए से भाजपा उम्मीदवार स्व. पांडेय की पत्नी रिंकी रानी पांडेय हैं तो कांग्रेस से शंभू पटेल।

यहां की चुनावी खेती में कुनबाई समीकरण की खाद है तो सहानुभूति की बयार बहाने की कोशिश भी। देखना यह है कि रंग किसका कितना जमता है। कुनबाई क्षत्रप आ-जा रहे। वोटों का मिजाज अलग-अलग धुरियों में हाल-ए-सियासत बयां करता हुआ, यह धुरी अंत-अंत में किस ओर घूम जाए, इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।

2005 में सीट निकालने वाला राजद कांग्रेस के समर्थन में है तो 2010 में जीत दर्ज कराने वाली लोजपा भाजपा के साथ। सबसे निचले पायदान को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे की हुंकार भरते सियासी चेहरे इस कुनबाई वोट बैंक को अपने-अपने एलायंस में बैलेंस करने की कोशिश भी कर रहे हैं। यह दावा यहां बेमानी दिख रहा कि अंतिम पायदान पर खड़ी एक जमात किसी एक धुरी पर ही जाकर टिक जाएगी। ऐसे में सात-आठ हजार वोटों की हैसियत रखने वाले कुनबों की बड़ी अहमियत होगी।

कौन काटेगा सियासी फसल, तय करेंगे स्थानीय चेहरे

शिवपुर में जयसुर बिंद कुछ पूछते ही सड़क दिखाने लगते हैं, पानी जम जाता है। गुलाब और शिवचरण बिजली बिल का रोना रोते हैं, पर बात वोट की आती है तो कहते हैं, अरे! वोट देने तो जाएंगे ही। क्या ये मुद्दे हैं? इसका जवाब ना में मिलता है, कुनबे और स्थानीय चेहरों के प्रभाव से इन्कार भी नहीं करते। इतना दिख रहा है कि मतदाताओं को लुभा रहे नेताओं की भीड़ में निहायत ही स्थानीय चेहरों की अहमियत बहुत अधिक होगी। इन पर बहुत हद तक निर्भर करेगा कि सियासी फसल कौन काट ले जाता है।

निगाहें तो सबकी टिकी हैं और रखवाली भी हो रही। मुकाबला जबरदस्त है, इस सीन में एक धुरी पर दशक भर पहले के सियासी वजूद की वापसी की जोर आजमाइश है तो दूसरी धुरी पर हाल के वजूद को बरकरार रखने की कोशिश।

भभुआ विधानसभा क्षेत्र: एक नजर

- 2.57 लाख मतदाता

- 1.22 लाख महिला वोटर

- 17 उम्मीदवार

- एनडीए व महागठबंधन प्रत्याशी में है टक्कर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.