बिस्किट खाकर भूख मिटा रहे बंजारा बस्ती के लोग
कैमूर। तीन दिनों से भात नहीं मिला है। किसी दुकान पर या किसी के घर मांगने जाते हैं तो लोग दुत्कारते हैं। कहते हैं कोरोना लेकर आ गई भाग यहां से। भूख से बिलखती हुई दस साल की लंका कुमारी की ये बातें सुनकर किसी की भी आंखें डबडबा जाएंगी।
कैमूर। तीन दिनों से भात नहीं मिला है। किसी दुकान पर या किसी के घर मांगने जाते हैं तो लोग दुत्कारते हैं। कहते हैं कोरोना लेकर आ गई, भाग यहां से। भूख से बिलखती हुई दस साल की लंका कुमारी की ये बातें सुनकर किसी की भी आंखें डबडबा जाएंगी। लंका उन बंजारा परिवारों की सदस्य है जो पिछले कई सालों से कुदरा प्रखंड के चिलबिली मौजा में रह रही है। इस तरह के यहां करीब दर्जन भर परिवार रहते हैं। अधिकतर पुरुष सदस्य दूसरे प्रांतों में हैं और लॉकडाउन के चलते घर आ नहीं पा रहे हैं। बस्ती में सिर्फ महिलाएं व बच्चे रह गए हैं जो किसी तरह अपने को जिदा रखे हुए हैं।
बंजारा परिवार की महिला सारंगा देवी बताती हैं कि उनके घर के पुरुष सदस्य चैती मेला में खिलौने बेचने के लिए मैहर गए थे। लॉकडाउन के चलते परिवार के पास आ नहीं पा रहे हैं। अब कमाने वाले ही बाहर हैं तो खाने के लिए लाएगा कौन। जो कुछ खाने को था सब खत्म हो गया। अब झोपड़ी में न अनाज है, न पैसा। किसी तरह बिस्किट आदि खाकर पिछले तीन दिनों से खुद को जिदा रखे हुए हैं। निजमा देवी बताती हैं कि छोटे-छोटे बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। कोई खोज खबर भी लेने नहीं आ रहा है। एक रोज पहले मुखिया प्रतिनिधि कुछ चावल, दाल व आलू देकर गए तो कुछ पेट में गया लेकिन अब खाने को कुछ भी नहीं है। लॉकडाउन के चलते गरीब व बेरोजगार परिवारों के सामने जीवन यापन का कितना बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है बंजारा बस्ती के हालात साफ बयां कर रहे हैं। जाहिर है कि जब बस्ती के लोगों की भूख ही नहीं मिट पा रही है तो मास्क व सैनिटाइजर कहां से लाएंगे। गरीबी के चलते ये लोग शारीरिक दूरी का पालन नहीं कर पा रहे हैं, लगता है कि समाज ने भी इन्हें सचमुच में दूर कर दिया है।
इस संबंध में पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि अशोक कुमार ने बताया कि कुछ तकनीकी कारणों की वजह से जन वितरण प्रणाली के डीलर के द्वारा अभी राशन नहीं बांटा जा रहा है। जन सहयोग से बंजारा बस्ती के लोगों के लिए राशन उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा।