हर दिल को दहला रही आवारा कुत्तों की दहशत
कैमूर। जिले में आवारा आतंक के पर्याय बने कुत्ते, बंदर, सियार आदि पशुओं से सतर्क रहना ही स
कैमूर। जिले में आवारा आतंक के पर्याय बने कुत्ते, बंदर, सियार आदि पशुओं से सतर्क रहना ही सुरक्षित रहने का सबसे अच्छा माध्यम है। ऐसे पशुओं के करीब जाने या उन्हें छेड़ने की आवश्यकता नहीं है। जानकारी हो जाने पर स्थानीय निकाय, पशु पालन व वन विभाग को ऐसे पशुओं को पकड़ कर ऐसी जगह छोड़ देनी चाहिए जिससे वे आम आवाम के लिए कष्टकारी साबित न हो। जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल में एंटी रैबीज इंजेक्शन लगवाने वालों की संख्या से आवारा आतंक की भयावहता स्वत: सिद्ध हो रही है। स्वास्थ्य विभाग से मिले आठ मार्च 2016 से 19 अप्रैल 2016 तक के लगाये गये एंटी रैबीज के आंकड़ों पर गौर करे तो कुल 15 सौ लोगों को एंटी रैबीज इंजेक्शन लगाये गये हैं। मार्च महीने में 795 व अप्रैल माह में अब तक 760 इंजेक्शन लगाये गये हैं। इस प्रकार देखा जाय तो औसतन प्रतिमाह एंटी रैबीज के चालीस इंजेक्शन लगाये जाते हैं। गत वर्ष सिर्फ सरकारी अस्पतालों में 13 हजार 700 एआरवी वाइल खर्च हुई थी।
उल्लेखनीय यह है कि कैमूर पहाड़ी से लगे कैमूर जिले के रामपुर, अधौरा, चैनपुर, भगवानपुर और चांद प्रखंड के दर्जनों गांव कैमूर पहाड़ी से जुड़े हैं। ऐसे में सेंच्यूरी वन क्षेत्र से भटक कर जंगली जानवर बंदर, भानू, सियार, लकड़बग्घा का मैदानी क्षेत्र में आवागमन होता रहता है। जिसके शिकार गांव के बड़े, बूढ़े व बच्चे तथा पशु होते रहते हैं।
क्या कहते हैं चिकित्सक -
फोटो फाइल 20 बीएचयू 10
डा. अनिल सिंह - रैबीज के संबंध में पूछे जाने पर प्रभारी सिविल सर्जन डा. अनिल सिंह ने कहा कि किसी पशु के काटने से रेडिस अर्थात हाइड्रोफोबिया हो जाता है। यह वायरल इंफेक्शन का रोग है। पागल कुत्ते या किसी जानवर के काटने पर तत्काल साबुन व पानी से कटे स्थल को धो डाले। तत्पश्चात डेटाल, सेवलान, अल्कोहल, स्प्रीट आदि से कटे स्थल को पोंछ दे और टेटनस का इंजेक्शन लगवाया जाय। इसके बाद यथा शीघ्र निकटतम अस्पताल से निर्धारित मात्रा में एंटी रैबीज इंजेक्शन लगवाये। मात्रा के संबंध में पूछे जाने पर उन्होने बताया कि घटना घटने के बाद तत्काल, तीन दिन बाद, सात दिन बाद, चौदह दिन बाद तथा तीस दिन बाद नियमित रूप से एंटी रैबीज इंजेक्शन लगवाना जरूरी है।