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जिले के हर घर तक शिशुओं की देखभाल को पहुंच रही आशा

जिले के हर घर तक शिशुओं की

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 04:37 PM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2019 04:37 PM (IST)
जिले के हर घर तक शिशुओं की देखभाल को पहुंच रही आशा

प्रसव के बाद नवजात की बेहतर देखभाल की जरूरत बढ़ जाती है। संस्थागत प्रसव के मामलों में शुरूआती दो दिनों तक मां और नवजात का ख्याल अस्पताल में रखा जाता है। लेकिन गृह प्रसव के मामलों में पहले दिन से ही नवजात को बेहतर देखभाल की जरूरत होती है। शिशु जन्म के शुरूआती 42 दिन अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान उचित देखभाल के अभाव में शिशु के मृत्यु की संभावना अधिक होती है। इसको ध्यान में रखते हुए होम बेस्ड न्यूज बर्न केयर (एचबीएनसी) यानि गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। इस कार्यक्रम के तहत संस्थागत प्रसव एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में आशा घर जाकर 42 दिनों तक नवजात की देखभाल करती है। गृह आधारित नवजात देखभाल पर अधिक ध्यान:

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जिला सिविल सर्जन डॉ. अरुण कुमार तिवारी ने बताया कि नवजात देखभाल सप्ताह के दौरान आशाओं द्वारा किए जा रहे गृह आधारित नवजात देखभाल पर अधिक •ाोर दिया गया है। इसके लिए आशाओं को निर्देशित भी किया गया है कि वह गृह भ्रमण के दौरान नवजातों में होने वाली समस्याओं की अच्छे से पहचान करें एवं जरुरत पड़ने पर उन्हें रेफर भी करें। आशाएं गृह भ्रमण के दौरान न सिर्फ बच्चों में खतरे के संकेतों की पहचान करती है बल्कि माताओं को आवश्यक नवजात देखभाल के विषय में जानकारी भी देती हैं। संस्थागत प्रसव में 6 एवं गृह प्रसव में 7 भ्रमण:

एचबीएनसी कार्यक्रम के तहत आशाएं संस्थागत एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में गृह भ्रमण कर नवजात शिशु की देखभाल करती है। संस्थागत प्रसव की स्थिति में 6 बार गृह भ्रमण करती है। इसमें जन्म के 3, 7, 14, 21, 28 एवं 42 वें दिवस पर भ्रमण का कार्य होता है। गृह प्रसव की स्थिति में सात बार गृह भ्रमण करती है। इसमें जन्म के 1, 3, 7,14, 21, 28 एवं 42 वें दिवस पर यह भ्रमण होता है। इसलिए गृह आधारित देखभाल है जरुरी:

लेंसेट 2012 की रिपोर्ट के अनुसार, शिशु मृत्यु दर के अनेक कारण है। जिनमें समय से पहले जन्म एवं कम वजन का होना प्रमुख कारण है। इसकी वजह से 35 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इसी तरह 20 प्रतिशत निमोनिया, नवजात की सांस अवरुद्ध होने से मृत्यु होती है। वहीं 16 प्रतिशत घाव का सड़ना या सेप्सिस एवं नौ प्रतिशत दिव्यांगता से मृत्यु हो जाती है। इस स्थिति में शिशु के बीमारी की सही समय पर पहचान कर उसकी जान बचाई जा सकती है। इस दिशा में एचबीएनसी कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हो रहा है।

इन लक्षणों को नहीं करें अनदेखा:

सही समय पर नवजात की बीमारी का पता लगाकर उसकी जान बचाई जा सकती है। इसके लिए खतरे के संकेतों को समझना जरुरी होता है। खतरे को जानकर तुरंत शिशु को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाएं।   1. शिशु को सांस लेने में तकलीफ हो 2. शिशु स्तनपान करने में असमर्थ हो 3. शरीर अधिक गर्म या अधिक ठंडा हो 4. शरीर सुस्त हो जाए5. शरीर में होने वाली हलचल में अचानक कमी आ जाए 

कार्यक्रम का उद्देश्य: 1. सभी नवजात शिशुओं को अनिवार्य नवजात शिशु देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराना एवं जटिलताओं से बचाना 2. समय पूर्व जन्म लेने वाले नवजातों एवं जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर उनकी विशेष देखभाल करना 3. नवजात शिशु की बीमारी का शीघ्र पता कर समुचित देखभाल करना एवं रेफर करना 4. परिवार को आदर्श स्वास्थ्य व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करना एवं सहयोग करना 5. मां के अंदर अपने नवजात स्वास्थ्य की सुरक्षा करने का आत्मविश्वास एवं दक्षता को विकसित करना


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