मशरुम की खेती ने महिलाओं के जीवन में ला दिया उजाला
जमुई। मशरुम की दुधिया चमक ने हरदीमोह की महिलाओं की ¨जदगी में उजाला ला दिया है।
जमुई। मशरुम की दुधिया चमक ने हरदीमोह की महिलाओं की ¨जदगी में उजाला ला दिया है। खैरा प्रखंड अंतर्गत हरदीमोह गांव की महिलाएं अब स्वावलंबी हो चुकी है। छह वर्षों के प्रयास से केवाल गांव के बाद हरदीमोह को मशरुम गांव का दर्जा हासिल हुआ है। कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण आत्मा जमुई की मदद से अब महिलाएं मशरुम की खेती कर ¨जदगी में बड़ा बदलाव लाने में कामयाब हुई है। कामयाबी में गुरुवार को उस वक्त चार चांद लग गया जब मशरुम उत्पादन को नजदीक से देखने जमुई के डीएम धर्मेन्द्र कुमार हरदीमोह पहुंचकर महिलाओं का उत्साहवर्द्धन किया।
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स्वयं सहायता समूह से बदली ¨जदगी
हरदीमोह गांव में छह वर्ष पूर्व आत्मा जमुई ने छह स्वयं सहायता समूह का गठन किया था। एक समूह में 20 से 25 महिला सदस्य हैं। वर्ष 2012 में मशरुम उत्पादन प्रारंभ किया गया। तब कुछ सदस्यों ने इससे किनारा भी किया। बहरहाल अब भी सौ से ज्यादा की संख्या में महिलाएं मशरुम उत्पादन कर रही हैं।
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मशरुम उत्पादन से होता है अप्रत्याशित लाभ
मशरुम उत्पादक अरुणा देवी, ¨रकी कुमारी, अंजू देवी, सावित्री देवी तथा मंजू देवी के अनुसार मशरुम उत्पादन के लिए एक बैग तैयार करने में 25 रुपया खर्च होता है। जबकि 100 रुपये की आमदनी होती है। इस प्रकार एक बैग में ही 75 रुपये का फायदा हो जाता है। घर के खाली जगहों में मशरुम का उत्पादन संभव है। इसलिए यह अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। कुल मिलाकर महीने में सात से आठ हजार रुपया फायदा मिलता है।
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ये है महिला समूह
लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह, मां सरस्वती स्वयं सहायता समूह, मां काली स्वयं सहायता समूह, आस्था स्वयं सहायता समूह, मां दुर्गे स्वयं सहायता समूह, जय अम्बे स्वयं सहायता समूह।
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कोट
महिलाओं के लिए मशरुम की खेती बेहतर स्वरोजगार है। घर के खाली हिस्से में कम लागत पर ज्यादा मुनाफा हासिल कर महिलाएं स्वावलंबी हो रही हैं।
आनंद विक्रम ¨सह
परियोजना निदेशक आत्मा, जमुई