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पाताल का सीना चीरने के बावजूद जल संकट से जूझ रहे हैं लोग

देश में उत्पन्न जल संकट की बानगी बिहार- झारखंड की सीमा पर स्थित आधा दर्जन जिलों के पठारी क्षेत्रों में भी दिखने लगी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 09 Apr 2018 12:12 PM (IST)Updated: Mon, 09 Apr 2018 10:58 PM (IST)
पाताल का सीना चीरने के बावजूद जल संकट से जूझ रहे हैं लोग
पाताल का सीना चीरने के बावजूद जल संकट से जूझ रहे हैं लोग

जमुई (अरविंद कुमार सिंह)। देश में उत्पन्न जल संकट की बानगी बिहार- झारखंड की सीमा पर स्थित आधा दर्जन जिलों के पठारी क्षेत्रों में भी दिखने लगी है। अब पाताल से पानी लाने की प्रक्रिया पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है। इस कारण जमुई (बिहार) और आसपास के जिलों में जल को लेकर उत्पन्न होने वाली विकट स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

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हर घर नल का जल योजना के तहत बड़े पैमाने पर की जा रही बोरिंग के दौरान इस जल संकट के संकेत मिल रहे हैं। यह तस्वीर चकाई ब्लाक की है। ऐसी ही स्थिति आसपास के गिरीडीह, नवादा, देवघर, बांका और मुंगेर जिले के पठारी क्षेत्रों की भी है। नतीजतन उन इलाकों के लोगों का हर घर नल का जल योजना का सपना चूर होता दिख रहा है।

चकाई ब्लाक मुख्यालय स्थित हाई स्कूल परिसर में एक हजार फीट बोरिंग करने के बावजूद पानी नहीं निकला। मामले में लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के कार्यपालक अभियंता ने 1500 फीट तक का प्रस्ताव प्रेषित किया है। स्कूल के बच्चे अभी जार का पानी पी रहे हैं।

नदियों में भी नहीं पानी

नेपाल से बिहार-झारखंड आने वाली अधिकांश नदियां अब बरसाती हो गई हैं। यानी बैसाख से असाढ़ तक सूखी ही रहती हैं। अतिक्रमण, बालू का अवैध उत्खनन व जंगलों की कटाई के कारण नदियों का जलस्नोत जगह-जगह समाप्त हो रहा है। डेढ़ दशक पहले तक ऐसी स्थिति नहीं थी। गड्ढा करने पर पानी मिल ही जाता था, अब एक बूंद भी जल नहीं है।

बगहा की नदियां ढोंगही व रघिया सूख गई हैं। नेपाल से आने वाली सुखौड़ा और कांपन सूख गई हैं। मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर से बहने वाली बूढ़ी गंडक, बागमती, नारायणी, बलान और नून नदियां विभिन्न स्थानों पर सूखने लगी हैं। मधुबनी की एक दर्जन नदियां जेठ में सूख जाती हैं। शिवहर में बागमती की पुरानी धारा सूखी है।

सीतामढ़ी की रातो व झीम नदियां सूखी पड़ी हैं। दरभंगा को नदियों का संगम कहा जाता है। एक समय में तकरीबन 50 नदियां बहती थीं, जो घटकर 10 से12 हो गई हैं।

डिस्चार्ज से पहले रिचार्ज जरूरी

कई पुरस्कारों से सम्मानित व जल पुरुष के रूप में ख्याति प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह एक हजार फीट तक पानी नहीं मिलने की समस्या को गंभीर बताते हैं। वह कहते हैं कि वर्षा का जल रोककर धरती का पेट भरने और फिर उससे जीवन चलाने की योजना पर सरकार को पहल करनी होगी। उन्होंने डिस्चार्ज से पहले रिचार्ज की योजना बनाने पर बल दिया।

600 फीट तक र्बोंरग के बाद बोर ड्राई हो जाने की रिपोर्ट सहित 1500 फीट तक र्बोंरग का प्रस्ताव विभाग को प्रेषित किया गया है। ऐसे मामलों की संख्या 60 है। सर्वाधिक मामले चकाई में हैं।

- ई बिंदुभूषण,

कार्यपालक अभियंता,

लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण

विभाग, जमुई


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