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पर्युषण पर्व के पांचवे दिन भगवान महावीर का हुआ जन्मवाचन

जमुई। पर्युषण पर्व के पांचवें दिन श्रवण भगवान महावीर की जन्मभूमि क्षत्रियकुंड लछुआड़ के श्वेताम्बर धर्मशाला स्थित महावीर मंदिर में जैनाचार्य नयव‌र्द्धधन स्वामी जी महाराज के सानिध्य में भगवान महावीर स्वामी का जन्म वाचन समारोह उत्साह के साथ मनाया गया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Sep 2018 07:56 PM (IST)Updated: Mon, 10 Sep 2018 07:56 PM (IST)
पर्युषण पर्व के पांचवे दिन भगवान महावीर का हुआ जन्मवाचन
पर्युषण पर्व के पांचवे दिन भगवान महावीर का हुआ जन्मवाचन

जमुई। पर्युषण पर्व के पांचवें दिन श्रवण भगवान महावीर की जन्मभूमि क्षत्रियकुंड लछुआड़ के श्वेताम्बर धर्मशाला स्थित महावीर मंदिर में जैनाचार्य नयव‌र्द्धधन स्वामी जी महाराज के सानिध्य में भगवान महावीर स्वामी का जन्म वाचन समारोह उत्साह के साथ मनाया गया। इनमें हजारों की संख्या में जैनभक्तों ने भाग लिया। प्रात: से ही महावीर जैन मंदिर पर दर्शन, पूजन के लिए लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई थी। दोपहर में जन्म वाचन समारोह में जन्म के पहले माता त्रिशला द्वारा देखे गए 14 स्वप्नों की बोलियां लगाई। दोनों समय का स्वामीवात्सल्य भी हुआ। दोपहर 2 बजे से जन्म वाचन समारोह प्रारंभ होकर 4:30 बजे संपन्न हुआ। जन्म वाचन के बाद पालने में भगवान को झूलाने के लिए होड़ लग गई। एक-दूसरे को भगवान के जन्म की बधाई देते हुए श्रीफल की प्रसादी का आदान प्रदान किया। इस मौके पर जैनाचार्य नयव‌र्द्धधन सूरी जी महराज ने भगवान महावीर स्वामी की जन्मवाचन पर चर्चा करते हुए कहा कि पूरे विश्व का उद्धार एवं कल्याण करने के लिए जन्म लेने वाले परम प्रभु परमात्मा आध्यात्मिक संपूर्ण सिद्धि को प्राप्त करने के लिए कैसा अद्वितीय एवं अद्भुत व अविरल पुरुषार्थ करते हैं उसका ज्वलंत उदाहरण है प्रभु महावीर की जीवनी। सर्वप्रथम गृहस्थ जीवन के कर्मों का क्षय करने के लिए प्रभु को 30 वर्ष तक गृहस्थ (संसारी) जीवन गुजारना पड़ा। प्रभु महावीर राजा सिद्धार्थ के कुल दिवाकर थे। माता त्रिशला के दुलारे थे। नंदिवर्धन के लघु भ्राता थे। बहन सुदर्शन के बीरा थे। दीक्षा लेने के पहले जब प्रभु महावीर 30 वर्ष तक गृहस्थावास में थे तब उनकी पुण्य प्रभा अद्वितीय थी। अनुकूल स्थिति में आनंद नहीं और प्रतिकूल स्थिति में खेद नहीं करने वाले प्रभु महावीर सभी संयोगों में उदासीन भाव रखकर हमेशा कर्मों के नाश के लिए उद्यमशील रहते थे। अंत में जैनाचार्य ने भगवान के जन्म उत्सव का विवरण व माता त्रिशला को आए 14 सपनों के महत्व को प्रतिपादित कर विचार व्यक्त किए।

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