अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से नहीं हो रहा जल संरक्षण
जमुई। जल है तो जीवन है और पानी बचाओ-जीवन दान पाओ आज सिर्फ जुमला बन कर ही रह गई है।
जमुई। जल है तो जीवन है और पानी बचाओ-जीवन दान पाओ आज सिर्फ जुमला बन कर ही रह गई है। जल संचयन में सरकारी संस्थानों एवं लापरवाह जनप्रतिनिधियों द्वारा बरती जा रही उदासीनता से मानव जीवन गहरे संकट में फंसता चला जा रहा है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जा रही है, प्रखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल का संकट गहराता जा रहा है। वर्तमान समय में सरकार जल संचयन को लेकर विभिन्न प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम भी चला रखी है, बावजूद इसके सरकारी महकमे के लोग ही जल संरक्षण को जानबूझकर समझना नहीं चाहते हैं। जिस वजह से वर्षों से बारिश के पानी को सहेजने के बजाय बर्बाद किया जा रहा है। बताते चलें कि सरकार ने निर्देश जारी कर रखा है कि कोई भी नवनिर्मित बड़े सरकारी भवनों में निर्माण के वक्त ही रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम का लगाना बेहद जरूरी है, बावजूद पिछले वर्ष गिद्धौर के निचली महुली में करोड़ों की लागत से बने पारा मेडिकल नर्सिंग एवं ट्रेनिग कॉलेज तथा छात्रावास भवन में इसकी व्यवस्था नहीं की गई। भवन निर्माण के समय न तो विभागीय अधिकारी ने इसका ध्यान रखा और न ही संवेदक ने जल संचयन की महत्ता को समझा। इस वजह से बरसात के मौसम में भवन की छत का पानी सड़कों पर बहकर बर्बाद हो जाता है। गिद्धौर पुलिस ओपी भवन व कृषि कार्यालय भवन में भी रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम नहीं है।
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सूख चुके हैं ताल-तलैया
जल संरक्षण नहीं किए जाने से प्रखंड की नदियां एवं ताल-तलैया अप्रैल में ही सूख गए। इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट की समस्या गहराती जा रही है। उलाई नदी, कटहरा नदी, चिनबरिया नदी, बरनार नदी के अलावा राजा सागर आहर, बबनी तालाब, त्रिपुर सुंदरी तालाब व सुंगठिया आहार तो मार्च के महीने से ही सूखा पड़ा है।
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कहते हैं शोधकर्ता
पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्षों से युवाओं को प्रेरित कर रहे रतनपुर के विनय अश्म कहते हैं कि बारिश के पानी को बचाकर रखना आज की जरूरत है। प्रखंड में हाल के कुछ दिनों में कई बड़े भवन का निर्माण हुआ, लेकिन रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम का नहीं लगाया जाना जल संरक्षण की अनदेखी है। आने वाले दिनों में भी बारिश के पानी को सहेजने की शुरुआत नहीं की तो बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा।