19 व 20 सितंबर को बीबी कमाल के दरगाह पर सजेगी महफिल
सूफी संतों की फेहरिस्त में प्रमुख मखदुमा बीबी कमाल की दरगाह पर 19 तथा 20 सितंबर से महफिल सजेगी। दो दिवसीय सूफी महोत्सव के पहले दिन दरगाह कमेटी की ओर से चादरपोशी फातेहा उर्स आदि आयोजित किए जाएंगे।
संवाद सहयोगी, काको, जहानाबाद
सूफी संतों की फेहरिस्त में प्रमुख मखदुमा बीबी कमाल की दरगाह पर 19 तथा 20 सितंबर से महफिल सजेगी। दो दिवसीय सूफी महोत्सव के पहले दिन दरगाह कमेटी की ओर से चादरपोशी, फातेहा, उर्स आदि आयोजित किए जाएंगे। पहले दिन का सलाना जलसा आयोजित होगा। विशेष पकवान के रूप में गुड़ की खीर पकायी जाती है। फातेहा के बाद अकीदतमंदों में उसका वितरण मिट्टी के बर्तन'ढकनी'में किया जाता है। इस उर्सोत्सव में बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, महाराष्ट्र व नेपाल के विभिन्न शहरों से अकीदतमंद शिरकत करने पहुंचते हैं।
अगले दिन 20 सितंबर को पर्यटन विभाग व जिला प्रशासन की ओर से सूफी महोत्सव आयोजित किया जाएगा। जोर शोर से यहां चल रही आयोजन की तैयारी इसकी तैयारी जोर शोर से चल रहा है तैयारी के लिए जिलाधिकारी नवीन कुमार, पुलिस अधीक्षक मनीष तथा अनुमंडल पदाधिकारी निवेदिता कुमारी यहां का भ्रमण कर चुके हैं।
प्रखंड मुख्यालय में भी बैठक की गई है। जिला प्रशासन की ओर से महोत्सव के दौरान सफाई, पेयजल, बिजली, सुरक्षा आदि का पुख्ता इंतजाम किया जाएगा। इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। सूफी संगीत के माध्यम से कलाकार देश व समाज में अमन व शांति की शिक्षा का प्रसार करते हैं। मजार का इतिहास वर्ष 1174 में बीबी कमाल अपनी पुत्री दौलती बीबी के साथ काको पहुंची थीं। बीबी कमाल बिहारशरीफ के हजरत मखदुम शर्फुद्दीन बिहारी याहिया की काकी थी। देश की पहली महिला सूफी संत होने का गौरव भी इन्हीं को प्राप्त है। फिरोजशाह तुगलक जैसे बादशाह ने भी बीबी कमाल को महान साध्वी के तौर पर अलंकृत किया था। इनके मजार पर शेरशाह, जहां आरा जैसे मुगल शासक भी चादरपोशी कर दुआएं मांगी थी। रूहानी इलाज व मन्नत के लिए यहां आते हैं लोग महान सूफी संत बीबी कमाल के मजार पर लोग रुहानी इलाज के लिए मन्नत मागते व इबादत करते हैं। दरगाह शरीफ के अंदर लगे काले रंग के पत्थर को कड़ाह कहा जाता है। यहां आसेब जदा और मानसिक रुप से विक्षिप्त लोग पर जूनूनी कैफियततारी होती है। दरगाह के अंदर वाले दरवाजे से सटे स्थित सफेद व काले पत्थर को लोग नयन कटोरी कहते हैं। यहां चर्चा है कि इस पत्थर पर उंगली से घिसकर आंख पर लगाने से आंख की रोशनी बढ़ जाती है। सेहत कुआं के नाम से चर्चित कुएं के पानी का उपयोग फिरोज शाह तुगलग ने कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए किया था। दरगाह से कुछ दूरी पर वकानगर में बीबी कमाल के सौहर हजरत सुलेमान लंगर जमीं का मकबरा है। आईने अकबरी में भी है इसका चर्चा हजरत बीबी कमाल का इतिहास आईने अकबरी में महान सूफी संत मकदुमा बीबी कमाल की चर्चा की गयी है, जिन्होंने न सिर्फ जहानाबाद बल्कि पूरे विश्व में सूफियत की रौशनी जगमगायी है। इनका मूल नाम मकदुमा बीबी हटिया उर्फ बीबी कमाल है। कहते हैं कि उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जराजौत रहमतूल्लाह अलैह बचपन में उन्हें प्यार से बीबी कमाल के नाम से पुकारते थे। बाद में वह इसी नाम से सुविख्यात हो गईं। इनकी माता का नाम मल्लिका जहां था। बताते हैं कि बीबी कमाल का जन्म 1211 ई. पूर्व तुर्कीस्तान के काशनगर में हुआ। मृत्यु 1296 ई. पूर्व में हुई थी। कहा जाता है कि एक बार जब बीबी कमाल काको आईं, तो यहां के शासकों ने उन्हें खाने पर आमंत्रित किया। उनके नैतिक, सिद्धांत, उपदेश, प्रगतिशील विचारधारा, आडम्बर एवं संकीर्णता विरोधी मत, खानकाह एवं संगीत के माध्यम से जन समुदाय तथा इंसानियत की खिदमत के लिए प्रतिबद्ध एवं समर्पित थीं। प्रखंड मुख्यालय स्थित बीबी कमाल के मजार से 14 कोस दूर बिहारशरीफ में उनकी मौसी मखदुम शर्फुद्दीन यहिया मनेरी का मजार है। ठीक इतनी ही दूरी पर कच्ची दरगाह पटना में उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जगजौत रहमतुल्लाह अलैह का मजार है।