जनता धोती बुनने वाले अपने तन के कपड़े को मोहताज
जहानाबाद। एक जमाना था जब जन वितरण प्रणाली की दुकानों में मारकीन और जनता धोती-साड़ी काड
जहानाबाद। एक जमाना था जब जन वितरण प्रणाली की दुकानों में मारकीन और जनता धोती-साड़ी कार्डधारकों को सरकारी दर पर मिलता था। जहानाबाद के गरेड़िया और मोहनपुर के बुने धोती, साड़ी, लूंगी और गमछा प्रदेश भर में बिकते थे। बदलते समय के साथ मिलों के कपड़े ने करधा का दम निकाल दिया और बुनकर अपने तन के कपड़े के लिए मजदूर बन गए। रोटी के जुगाड़ में दूसरे प्रदेश में जाकर मजदूरी को बाध्य हो गए। बुनकरों की यह दशा इसलिए भी हुई कि किसी ने सुध ही नहीं ली इनके पुश्तैनी धंधे को संरक्षित करने के लिए। उद्योग धंधों की कमी से आज बाजार बेरौनक है। शहर के गड़ेरियाखंड और रतनी फरीदपुर प्रखंड के मोहनपुर के हस्तकरघे खामोश हैं। महीन सूत्री वस्त्रों को बनाने वाले लोग रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेशों में पलायन कर चुके हैं। मौजूद लोग छोटे-मोटे काम कर अपने और अपने परिवार के लिए दो जून का निवाला जुटा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि लोकसभा, विधानसभा चुनाव में वोट के लिए सभी नेता आते हैं लेकिन एक ही आश्वासन मिलता रहा कि चुनाव जीतने के बाद आपलोगों के व्यवसाय का बढ़ावा दिया जाएगा, लेकिन हालात कुछ और हीं बयां कर रही है। चुनाव जीतने के बाद कोई नेता झांकते तक नहीं आता है।
शाहजहां की बेटी ने अनाज की एक बड़ी मंडी के रूप में जहानाबाद को बसाया था
बादशाह शाहजहां के काल को मुगल शासन का स्वर्ण युग कहा जाता था। उसी स्वर्ण युग में जब उत्तर भारत गंभीर सूखे की मार से भीषण अकाल की चपेट में था, तब बादशाह शाहजहां की बेटी जहांआरा ने भूख से पीड़ित लोगों के लिए अनाज की एक बड़ी मंडी के रूप में जहानाबाद को बसाया था। अंग्रेज के जमाने में मोहनपुर इलाका हस्तकरघा पर सूती वस्त्रों के निर्माण के लिए चर्चित था। 1960 में बुनकरों ने सूती वस्त्र बनाने का कार्य प्रारंभ किया था। प्रारंभिक दौर में यह व्यवसाय परवान पर था। यहां के बने वस्त्रों को प्रदेशों में पूछ थी। यहां के कारीगर साड़ी, धोती, लूंगी, बेडशीट के अलावा दर्जन प्रकार के कपड़े बनाते थे। 'जनता साड़ी-धोती' ने प्रदेश में एक अलग पहचान बनाई थी। खट-खट की आवाज से पूरा गांव मोहल्ला गुलजार हुआ करता था। 1980 से इस व्यवसाय पर किसी की नजर लग गई और धीरे-धीरे यह व्यवसाय अपना वजूद खोता गया। सुनें कहानी उनकी जुबानी
मोहनपुर के बुनकर का कहना है कि जबसे हैंडलूम कारपोरेशन का विकास हुआ तबसे हस्तकरघा की आवाज धीरे-धीरे गुम होने लगी। अंतत बुनकर इस व्यवसाय को बंद करने में ही अपनी भलाई समझे। वस्त्र बनाने के लिए सामग्री मिलने में भी परेशानी होने लगी। लागत मूल्य से कम कीमत मिलने लगे।
मनौअर अंसारी नेताओं ने आश्वासन के अलावा कुछ नहीं किया है। प्रत्येक चुनाव में हमलोगों के रोजगार को बढ़ावा देने का भरोसा दिया जाता है लेकिन आज तक किसी ने हमलोगों के रोजगार पर ध्यान नहीं दिया गया। व्यवसाय बंद होने के कारण अपने परिवार के जीविकोपार्जन के लिए दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ता है।
शौकत अली