जिउतिया देख रोए, क्यों नहीं आए लवकुश
मदन शर्मा जहानाबाद जब जिउतिया देखते हैं तो आखों में आंसू आ जाते हैं। शहीद लवकुश के अपनी मां के लिए जिउतिया और पत्नी के लिए मंगलसूत्र का आर्डर देकर जनवरी में ड्यूटी पर गया था।
मदन शर्मा, जहानाबाद :
जब जिउतिया देखते हैं तो आखों में आंसू आ जाते हैं। शहीद लवकुश के अपनी मां के लिए जिउतिया और पत्नी के लिए मंगलसूत्र का आर्डर देकर जनवरी में ड्यूटी पर गया था। इंतजार में आंखें पथरा गई। तीज बीत गया और जिउतिया भी आ गया। अब वो नहीं आएगा जिउतिया और मंगलसूत्र के लिए यह सोचकर आंखे भर जाती है। हम बात कर रहे हैं अराध्या ज्वेलर्स के मालिक की।
दिसंबर में छुट्टी आने पर लवकुश मां और पिता के साथ आकर अराध्या ज्वेलर्स से बाली खरीद कर ले गया था। सीमा पर जाने के पहले मां का अकेला बेटा जिउतिया के लिए आर्डर दिया था। बताया था कि तीज के पहले आएंगे तो बीबी के लिए मंगलसूत्र और मां को जिउतिया देंगे। मां का आंचल व्याकुल रह गया। मंगलसूत्र तो जार-जार हो गया।
हर सुहागन के गले में मंगलसूत्र और मां के गले में जिउतिया को सिर्फ सिंगार नहीं बल्कि यह रिश्ते की गहराई का एहसास दिलाते रहता है। कश्मीर के बारामुला में शहीद हुए लवकुश शर्मा की मां प्रमिला देवी न तो अपने बेटे द्वारा बनाए गए जिउतिया पहन पाएगी और नहीं पत्नी अनिता देवी मंगलसूत्र पहनकर अपने गले की शोभा भी बढ़ा पाएगी। शहीद लवकुश जब 25 दिसंबर को एक महीने की छुट्टी में घर आए थे तो मां और पिता जी के साथ जहानाबाद गए थे। वे लोग शहर के अराध्या ज्वेलर्स में गए थे। वहां उन्होंने मां के लिए कनवाली खरीदी थी। उन्हें यह पता चला था कि उनकी मां को जिउतिया की जरूरत है और पत्नी को भी मंगलसूत्र की आवश्यकता थी। एक ही साथ उन्होंने आभूषण बिक्रेता अजय कुमार को दोनो के लिए आर्डर दे दी थी। यह कहा था कि अगली बार जब छुट्टी में आएंगे तो इसे ले जाएंगे। उन्हें क्या पता था कि इस आर्डर के बाद भी वह यहां नहीं आने वाले हैं। छुट्टी में आने के पहले ही मां भारती की पुकार ने उन्हें देश के दुश्मनों से लोहा लेने को भेज दिया। इस दौरान आतंकियों से लड़ते हुए वे शहीद हो गए।अराध्या ज्वेलर्स के संचालक अजय कुमार कहते हैं कि लवकुश शर्मा और उनके परिवार के लोग उनके नियमित ग्राहक थे। जब भी आवश्यकता होती थी तो वे लोग उन्हीं के दुकान पर आते थे। उन्होंने कहा कि लवकुश मंगलसूत्र और जिउतिया के लिए आर्डर दिए थे। उसके अनुरूप तैयार कर रखे हुए थे। इसी बीच यह जानकारी मिली कि वे शहीद हो गए। उसने कहा कि इस जानकारी से उनलोगों की भावना भी आहत हुई है। अब तो यह हिम्मत भी नहीं हो रहा है कि उसे लेकर उनके दरवाजे पर जाउं। हालांकि वे मातम पुरसी के लिए उनके दरवाजे पर गए। वहां जाते ही उनकी आंखें भर आई। जैसे ही उनकी मां और पिताजी पर नजर पड़ी अपने आपको संभाल नहीं सके। सोचा कि अब इनलोगों के लिए जिउतिया और मंगलसूत्र का क्या महत्व रह गया है। बेसुध पड़ी पत्नी और मां को अब यह सब कौन काम आने वाला है। मां प्रमिला देवी तो अपने इकलौते चिराग को मां भारती को सौंप दिया। ऐसे में अब उन्हें जिउतिया की क्या जरूरत रह गई है। यह औलाद को हर कष्ट से रक्षा करता है। उनका औलाद तो कष्टों से पार भारत मां के सपूत में शामिल हो गए।