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    ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व है मधुश्रवा का

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    Updated: Sat, 30 Apr 2016 09:50 PM (IST)

    जहानाबाद। इतिहास के पन्नों पर अपना स्थान रखने वाला सुरम्य स्थल है अरवल जिले के कलेर प्रखंड क ...और पढ़ें

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    जहानाबाद। इतिहास के पन्नों पर अपना स्थान रखने वाला सुरम्य स्थल है अरवल जिले के कलेर प्रखंड का मधुश्रवा। यहां के लोगों को गर्व है इस धरती पर गर्व है। धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में भी इसकी अपनी पहचान है। धर्म स्थली के रुप में मधुश्रवां, पंचतीर्थ, सती मंदिर, लारी, बेलसार, खटांगी, किंजर सहित अन्य धार्मिक उपासना स्थल महत्वपूर्ण है। मधुश्रवां के मधेश्वरनाथ के लोगों में चर्चा का विषय है। यहीं पर मधु नामक राक्षस का वध हुआ था। आज भी यहां तालाब में स्नान करने तथा बाबा भोले नाथ का दर्शन करने से लोभ, मोह, क्रोध आदि दुर्गूण नष्ट हो जाते हैं तथा दैविक शक्ति का समावेश होता है। यह धर्म स्थल एनएच 98 पर महेन्दिया से दो किलोमीटर पश्चिम की ओर अवस्थित है। पौराणिक एवं प्राचीन धर्म स्थल होने का प्रमाण धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। धार्मिक ग्रंथों एवं जनश्रुतियों के अनुसार कालांतार में ब्रहमपुत्र भृगुमुनी गंगा नदी के तट पर तपस्या में लीन थे। उनके साथ उनकी पत्‍‌नी फूलोत्मा रहती थी। मुनी के स्नान करने जाने के दौरान उनकी पत्‍‌नी को एक राक्षस उठाकर आकाश मार्ग से भागने लगा। भृगुमुनी ने कुश का एक दिव्य वाण बना कर राक्षस पर छोड़ा और राक्षस घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा। मुनी की पत्‍‌नी गर्भवती थी और उसने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया जिसका नाम च्यवन रखा गया। उसी वक्त इस पौराणिक स्थल का नामाकरण मधुश्रवां किया गया। यह भी बताया जाता है कि प्रसव काल के दौरान मुनी की पत्‍‌नी के शरीर से जो रक्तश्राव हुआ उससे वहां पर एक तालाब का निर्माण हुआ। मधुश्रवां स्थित इस तालाब के बारे में भी एक धार्मिक मान्यता है। जनश्रुतियों के अनुसार जिस स्त्री को संतान नहीं होता है वह अगर सच्चे मन से तालाब में स्नान कर भगवान शंकर की पूजा करती है तो उसकी सारी मन्नतें पूर्ण होती है। इतना ही नहीं उक्त तालाब में स्नान करने से कुष्ठ व चर्म रोग सहित अन्य बीमारियां भी दूर होती है। जनश्रूति के अनुसार मर्यादा पुरुषोतम श्री रामचंद्र ने भी गया पिंडदान करने जाते समय पत्‍‌नी सीता के साथ यहां रुककर बाबा मधेश्वरनाथ की पूजा अर्चना की थी। यहां यह भी उल्लेख है कि सावन माह में शिवभक्त पहुंचकर बाबा मधेश्वरनाथ पर जलाभिषेक करते हैं। इसका प्रमाण शिव पुराण में भी मिलता है। ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार राजा की बेटी सुकन्या ने च्यवन ऋषि के दीपक लगे शरीर को कंचन काया में बदलने के लिए सबसे पहले यहां छठव्रत करने की परंपरा शुरु की थी। इतना ही नहीं प्रदेश में प्रत्येक तीन वर्षो पर लगने वाला मोलमास मेला राजगीर के बाद यही लगता है।

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    गौरतलब हो कि मधुश्रवां को एक धार्मिक स्थल होने के बावजूद आज तक इसे पर्यटक स्थल का दर्जा नहीं मिल सका। जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक उपेक्षा के कारण उक्त ऐतिहासिक व धार्मिक धरोहरों आज भी उपेक्षा का शिकार बन कर रह गया है जबकि अरवल से कई जनप्रतिनिधि केन्द्र व राज्य में मंत्री पद सुशोभित कर चुके हैं। जनप्रतिनिधियों ने कई बार घोषणा की है। इसके बावजूद मधुश्रवां को पर्यटक स्थल का दर्जा नहीं मिल पाया।

    इस ऐतिहासिक स्थल के विकास के लिए धार्मिक न्यास बोर्ड द्वारा अधिग्रहण तो किया गया लेकिन समुचित विकास नहीं हो पाया। जिला प्रशासन द्वारा इस स्थान पर स्थित पवित्र सरोवर में घाट व स्नान घर के साथ ही चबुतरा का निर्माण कराया गया है। एक सामुदायिक भवन का भी निर्माण हुआ है। इस स्थल पर राज्य के कोने-कोने से लोग आते हैं। पवित्र सरोवर में स्नान एवं सारे ब्याधियों से मुक्ति की अभिलाषा से पहुंचे लोग भी इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में देखना चाहते हैं।

    मठ की जमीन से होती है आमदनी

    इस ऐतिहासिक स्थल का अपना कृषि योग्य जमीन है। अगर स्थानीय न्यास बोर्ड द्वारा खेती कराई जाती तो उसकी आमदनी से ही काफी विकास हो सकता है। इसके लिए सार्थक पहल नहीं किया जाता है। लगन के दिनों में इस पवित्र स्थल पर होने वाले शादी-ब्याह से भी अच्छी खासी आमदनी होती है। इसके बावजूद स्थानीय बोर्ड द्वारा पहल नहीं हो रहा है।

    सुने जिला पदाधिकारी की

    मधुश्रवां को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सरकार को लिखा गया है। पर्यटन विभाग को इसके ऐतिहासिक पहलुओं की जानकारी दी गई है।

    आलोक रंजन घोष

    डीएम अरवल।