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विज्ञान की प्रगति ने लगाया चाक की चौकरी पर ग्रहण

जहानाबाद। रौशनी का त्योहार दीपावली आने वाली है। ऐसे में माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए हर ओर तैयारी चल रही है। लोग अपने घरों की साफ-सफाई करने में जुटे हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 02 Nov 2018 07:24 PM (IST)Updated: Fri, 02 Nov 2018 07:24 PM (IST)
विज्ञान की प्रगति ने लगाया चाक की चौकरी पर ग्रहण
विज्ञान की प्रगति ने लगाया चाक की चौकरी पर ग्रहण

जहानाबाद। रौशनी का त्योहार दीपावली आने वाली है। ऐसे में माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए हर ओर तैयारी चल रही है। लोग अपने घरों की साफ-सफाई करने में जुटे हैं। कुंभकारों के चाक ने भी रफ्तार पकड़ी है। लेकिन उसकी रफ्तार अब पहले की तरह नहीं रह गई है। विज्ञान की प्रगति ने इसकी चौकरी पर ग्रहण लगा दिया है। दीपावली त्योहार के आगमन के महीनों पहले से ही इस व्यवसाय से जुड़े लोग मिट्टी के दीये बनाने में जुट जाते थे। उन लोगों का यह पुश्तैनी धंधा जीविका का बड़ा जरिया हुआ करता था। लेकिन बदलते समय में विज्ञान ने आधुनिकता की जो रफ्तार चलाई है उस रफ्तार में चाक की चौकरी पर ग्रहण लग गया है। पहले मंदिरों से लेकर घरों तक मिट्टी के दीये ही इस त्योहार में जलाए जाते थे। अब घरों को रौशन करने के लिए बिजली से संबंधित उपकरण बाजारों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। यह लोगों को काफी सुविधा भी प्रदान कर रहा है। मिट्टी के दीये में तेल का उपयोग होता था। लेकिन इस महंगाई के दौर में यह संभव नजर नहीं आता है। ऐसे में सस्ते तथा सुगम तरीके से लोग बिजलीजनित बल्बों का ही सहारा ले रहे हैं। हालांकि भगवान के दरबार में अभी भी पुरानी परंपरा के अनुरूप मिट्टी के दीये ही जलाए जाते हैं। इस उत्सव के पहले दिन मृत्यु पर विजयी प्राप्त करने के उद्देश्य से यम के नाम का दीया जलाया जाता है तो दूसरे तथा तीसरे दिन कुल देवी-देवताओं तथा माता लक्ष्मी के समक्ष मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं। इस कारण लोगों को मिट्टी के दीये खरीदना पड़ रहा है। हालांकि अब पहले की तरह इसकी बिक्री नहीं रह गई है। कुंभकार सत्येंद्र पंडित बताते हैं कि वर्षों से हमलोगों का यह मुख्य व्यवसाय रहा है लेकिन अब जिस तरह से नए-नए उपकरण आ रहे हैं उसके कारण इस त्योहार में भी दीये की मांग ज्यादा नहीं हो रही है। शादी-विवाह में भी मिट्टी के बर्तन का अब कम ही उपयोग होता है।

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