दो एकड़ में अवरोध, 14 गांवों का पानी बंद
महज दो एक 78 डिसमिल भूमि में अवरोध के कारण नेनुआ नाले के पानी से किसान निहाल नहीं हो सके।
संजू देवी, करपी, अरवल। महज दो एक 78 डिसमिल भूमि में अवरोध के कारण नेनुआ नाले के पानी से किसान निहाल नहीं हो सके। तीन दशक में दो-दो मुख्यमंत्री के पांव यहां पड़े। करोड़ो रुपये खर्च हुए, लेकिन खेतों को पुनपुन नदी का पानी नहीं मिला।
अरवल जिले के वंशी प्रखंड के नेनुआ नाले से 14 गांवों को सिंचित करने की कवायद 1993 में आरंभ हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यहां आए थे। इस नाले से पुनपुन नदी का पानी सिंचाई के लिए आपूर्ति करने की योजना बनी। अरवल के साथ औरंगाबाद जिले के सीमावर्ती गावों तक पानी पहुंचाने के लिए साइफन निर्माण करना था। निर्माण शुरू हुआ, लेकिन पूरा नहीं हो सका। वर्ष 2011 में फिर मुख्यमंत्री यहां पहुंचे तब कुछ ज्यादा ही उम्मीद बढ़ी लेकिन महज 2.78 एकड़ भूमि की बाधा के कारण परियोजना आज तक अधूरी रह गई। किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने को लेकर इस नाले पर साइफन बनाए जाने को लेकर आधारशिला भी रखी गई थी।
नेनुआ नाला वंशी प्रखंड क्षेत्र के कोनी सीतारामपुर के समीप पुनपुन नदी से निकली है। कुर्था प्रखंड के क्षेत्र के पंतित में जाकर पुन पुनपुन नदी में ही मिल जाती है। वर्ष 1993 में इसी प्रखंड के सोनभद्र निवासी मुंद्रिका सिंह यादव राज्य सरकार में मंत्री थे। उनके पहल पर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यहां साइफन निर्माण को लेकर आधारशिला रखने पहुंचे थे। शिलान्यास को उपरांत तकरीबन एक करोड़ 20 लाख की लागत से बनने वाले साइफन को लेकर कार्य प्रारंभ भी हुआ।लेकिन कुछ समय बाद यह कार्य बंद हो गया। इलाके के किसान इस परियोजना से पूरी तरह मायूस हो गए थे। 2011में उन लोगों की उम्मीद जगाने को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहां आए। बड़े तामझाम के साथ इस परियोजना की आधारशिला फिर से रखी गई, जिसके तहत साइफन का निर्माण भी गति पकड़ा। लेकिन किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने को लेकर साइफन से जोड़ने वाली नहर का निर्माण कार्य भूमि अधिग्रहण में अधिकारियों की सुस्ती के कारण अमलीजामा नहीं पहनाया सका। परिणामस्वरूप यहां कमोबेश सालों भर पानी तो जरूर रहता है, लेकिन इससे आसपास के खेतों की प्यास नहीं बुझती है। ------------------
किसानों का आंदोलन पर बना साइफन पर सिचाई अब भी बाधित
नेनुआ नाले से खेतों को सिचित करने को लेकर किसानों द्वारा लंबा संघर्ष किया गया। स्थानीय किसान सत्येंद्र कुमार के नेतृत्व में गठित संघर्ष समिति के संघर्ष का हीं परिणाम था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 28 नबंर 2011 को यहां आना पड़ा था। लेकिन एक दशक बीत जाने के बाद भी यह अपने उद्देश्य तक नहीं पहुंच सका है। --------------
दो एकड़ 78 डिसमिल भूमि अधिकरण का मामला बना बाधक
2016 में यह साइफन बनकर तैयार हो गया। पुल तथा साइफन का निर्माण इस तरह कराया गया है कि पुल के नीचे से नाले में पुनपुन नदी का पानी पार कर सके। पुल के ऊपर बीच मे नहर बनाया गया। लेकिन करोड़ो खर्च के बाद अब इस साइफन से खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए भूमि अधिग्रहण का मामला बाधक बन गया। इसके तहत दो एकड़ 78 डिसमिल भूमि अधिकृत किया जाना था। लेकिन संबंधित अधिकारी इस दिशा में पहल करने को आगे नहीं आए। वंशी प्रखंड के वार्ड संघ के अध्यक्ष व स्थानीय निवासी कृष्णा कुमार गौतम बताते हैं कि जिन किसानों का भूमि इस नहर में समाहित हो रहा है। वे लोग इसके एवज में उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं। यदि मुआवजा मिलता है तो जमीन देने में किसानों को कोई एतराज नहीं हैं। लेकिन इसमें अधिकारिक स्तर पर पहल नहीं हो सका।परिणाम स्वरूप लोगों ने कार्य को बंद करा दिया। हालात यह है कि अब यह साइफन महज शोभा की वस्तु बनकर रह गई है। ---------------
14 गांवों के अलावा औरंगाबाद की भूमि भी इससे हो सकती थी सिचित
इस साइफन से अरवल जिले के वंशी प्रखंड के14 गांव के साथ साथ सीमावर्ती औरंगाबाद जिले के कई गांवों के खेतों तक पानी पहुंच सकता हैं। लेकिन साइफन से पानी को आगे बढ़ाने का कोई लिक नहीं रहने के कारण सिचाई संभव नहीं हो पा रहा है।गर्मी के दिनों में इस प्रखंड के लगभग सभी गांव में पेय जल की समस्या भी कायम हो जाती है। यह परियोजना यदि वास्तविक रूप से मूर्त रूप में आती तो भू-जल स्तर को भी स्थिर रखा जा सकता था। यदि पुल के ऊपर बने नहर से पानी गुजरता तो मोगला पुर, वंशी, गंगापुर, भगवती पुर, अनुवा, कल्याणपुर, कस्तूरीपुर समेत दर्जनों गावों के हजारों हेक्टेयर भूमि सिचित होती।